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प्रवचन-सारोद्धार
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तीसरे मिश्र गुणस्थान में आठ कर्म की उदीरणा होती है, कारण इस गुणस्थान में कोई नहीं मरता। अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु शेष रहने से पूर्व ही जीव या तो चौथे गुणस्थान में चला जाता है या प्रथम गुणस्थान में।
अप्रमत्तसंयत, अपर्वकरण व अनिवृत्तिबादर गणस्थान में वेदनीय व आय को छोडकर शेष६ कर्मों की उदीरणा होती है, क्योंकि इन गुणस्थानों में वेदनीय और आयुकर्मों की उदीरणा योग्य अध्यवसायों का अभाव रहता है। यहाँ अध्यवसाय अतिविशुद्ध होते हैं।
सूक्ष्म संपराय गुणस्थान में वेदनीय व आय के बिना छ: की उदीरणा होती है तथा मोहनीय के बिना पांच की उदीरणा होती है। जब मोहकर्म आवलिकामात्र शेष रहता है तब उसकी उदीरणा समाप्त हो जाती है।
उपशान्तमोह गुणस्थान में पांच की उदीरणा होती है। वेदनीय और आयु तो तथाविध अध्यवसाय के अभाव में उदीर्ण नहीं होते और मोहनीय उदय के अभाव से उदीर्ण नहीं होता। क्योंकि उदीरणा का यह नियम है कि जिसका उदय समाप्त हो जाता है उसकी उदीरणा भी समाप्त हो जाती है।
क्षीणमोह गुणस्थान में पूर्ववत् पाँच कर्मों की ही उदीरणा होती है। परन्तु जब पाँचों कर्म आवलिकामात्र शेष रहते हैं तब इनकी उदीरणा भी समाप्त हो जाती है। तब मात्र नाम और गोत्र दो कर्मों की ही उदीरणा शेष रह जाती है।
सयोगी केवली गुणस्थान में नाम व गोत्र मात्र दो कर्मों की ही उदीरणा होती है। चार घातीकर्म तो यहाँ समूल ही नष्ट हो जाते हैं तथा वेदनीय व आयु की उदीरणा तथाविध अध्यवसाय के अभाव से ही नहीं होती।
__ अयोगी केवली गुणस्थान अनुदीरक है, कारण उदीरणा योगसापेक्ष है और यह गुणस्थान अयोगी है । बंध-उदय-उदीरणा व सत्तागत प्रकृत्तियाँ
• बंध की विचारणा करते समय एक सौ बीस प्रकृतियाँ ही ली गई हैं। कारण पांच बंधन
+ पांच संघातन = ये दश प्रकृतियाँ अपने-अपने शरीर नामकर्म के अंतर्गत ही मान ली जाती हैं। वर्णादि बीस में से सोलह उत्तरभेद न लेकर मूल चार भेद ही लिये जाते हैं तथा सम्यक्त्वमोह व मिश्रमोह की अलग से विवक्षा न करके केवल मिथ्यात्वमोह ही लिया जाता है, कारण पूर्वोक्त दोनों प्रकृतियाँ मिथ्यात्व का ही परिवर्तितरूप हैं। इस प्रकार एक सौ अड़तालीस में से दश + सोलह + दो = अट्ठावीस प्रकृतियाँ निकलने से बंध में कुल
एक सौ बीस प्रकृतियाँ ही रहती हैं। • उदय में सम्यक्त्वमोह व मिथ्यात्वमोह दो बढ़ जाने से एक सौ बीस + दो = एक सौ
बावीस प्रकृतियाँ होती है। • जिन प्रकृतियों का उदय होता है उनकी ही उदीरणा होती है । इस नियम के अनुसार उदीरणा भी एक सौ बावीस की ही है। For Private & Personal Use Only
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