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प्रवचन-सारोद्धार
१९९
हरि
में 4346
पूर्ण
(iv) वैमानिक
- जिसमें पुण्यवान जीव विविध प्रकार से सुखोपभोग करते हैं, वे विमान कहलाते हैं और उनमें रहने वाले देव वैमानिक देव
कहलाते हैं। भवनपति आदि देवों के क्रमश: दस, आठ, पाँच एवं छब्बीस भेद हैं।
भवनपति के भेद दक्षिणेन्द्र स्थिति उत्तरेन्द्र स्थिति (i) असुरकुमार चमरेन्द्र १ सागरोपम बलीन्द्र १ सागरोपम
साधिक नागकुमार धरणेन्द्र
भूतानंद दे (ii) सुपर्णकुमार वेणुदेव
हरिसह शोन (iv) विद्युत्कुमार
वेणुदाली दो (v) अग्निकुमार अग्निशिख
अग्निमाणव प (vi) वायुकुमार वेलंब
प्रभंजन ल्यो (vii) स्तनितकुमार सुघोष
महाघोष प (viii) उदधिकुमार जलकानत
जलप्रभ म (ix) द्वीपकुमार
वशिष्टक आ (x) दिक्कुमार
अमित
मितवाहन यु • ये देव मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में रहते हैं। दोनों दिशा के इन्द्र अलग-अलग होने
से कुल मिलाकर भवनपति निकाय के = २० इन्द्र हैं। उत्तरवर्ती इन्द्र स्वभाव से शुभ हैं,
पर दक्षिण दिशावर्ती उग्र स्वभाव वाले हैं। देवों की स्थितिउत्तर दिशा में साढ़े तीन
दक्षिणदिशा में साढ़े चार चमरेन्द्र की पल्योपम की
बलीन्द्र की देवी पल्योपम की देवी की नागकुमार देशोन एक
नागकुमार आदि अर्धपल्योपम आदि नव पल्योपम
नव निकाय के निकाय के
अधिपतियों की अधिपतियों
देवी की की देवी की प्रश्न-ये देव कुमार क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर—ये देव बालक की तरह सतत क्रीड़ा मग्न रहने से कुमार कहलाते हैं। जैसे बालक सजने-संवरने का शौकीन होता है वैसे ये भी अनेक प्रकार के रूप बदलते रहते हैं। अनेक प्रकार की Jain Education International For Private & Personal Use Only
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