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प्रवचन-सारोद्धार
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पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व-ये आठ वाणव्यन्तर हैं ॥११३० ॥
अप्रज्ञप्तिक, पंचप्रज्ञप्तिक, ऋषिवादित, भूतवादित, नंदित, महाक्रन्दित, कूष्मांड और पतंग-ये आठ व्यन्तर रत्नप्रभा के प्रथम सौ योजन में रहते हैं। इनके सोलह इन्द्र रुचक पर्वत के नीचे उत्तर-दक्षिण दिशा में रहते हैं।।११३१-३२ ।।
___ चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र एवं तारा-ये ज्योतिषी देव के पाँच भेद हैं। ये चल और स्थिर दो प्रकार के हैं। स्थिर ज्योतिषी घंटाकार होते हैं ॥११३३ ।।
सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लांतक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण्य और अच्युत-ये बारह देवलोक हैं। सुदर्शन, सुप्रतिबुद्ध मनोरम, विशाल, सर्वतोभद्र, सुमन, सौमनस्, प्रीतिकर, आदित्य-ये नवग्रैवेयक हैं। विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध-ये पाँच अनुत्तर विमान हैं। ये चार प्रकार के देव हैं ।।११३४-३७॥
चमरेन्द्र और बलीन्द्र की आयु क्रमश: एक सागर और साधिक एक सागर की है। दक्षिण और उत्तरदिशा के देवों का आयुष्य क्रमश: डेढ़ पल्योपम एवं देशोन दो पल्योपम का है ॥११३८ ॥
असुर-युगल की देविओं की उत्कृष्ट आयु क्रमश: साढ़े तीन और साढ़े चार पल्योपम की है। शेष नौ निकाय की देवियों तथा व्यन्तर देवियों की आयु क्रमश: देशोन एक पल्योपम और आधा पल्योपम है ।।११३९ ॥
भवनपति और व्यन्तर देव-देवियों का जघन्य आयु दस हजार वर्ष का तथा व्यन्तरों का उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम का है ।।११४० ।।
चन्द्र की आयु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। सूर्य की आयु हजार वर्षाधिक एक पल्योपम की, ग्रह की आयु एक पल्योपम की, नक्षत्र की आयु आधा पल्योपम की तथा तारा की आयु पल्योपम का चौथा भाग है। इन की देवियों की उत्कृष्ट आयु देवों की आयु से आधी है। पर नक्षत्र और तारा की देवियों की आयु कुछ अधिक आधी है। तारा देव और देवी को छोड़ कर शेष आठ की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग है। तारा देव और देवी की जघन्य आयु पल्योपम का आठवां भाग है ॥११४१-४२ ॥
दो सागर, साधिक दो सागर, सांत सागर, साधिक सात सागर, दस सागर, चौदह सागर, सत्रह सागर क्रमश: सौधर्म से महाशुक्र देवलोक तक के देवों की उत्कृष्ट आयु समझना। इनसे ऊपर के देवलोकों में प्रति देवलोक एक-एक सागर की वृद्धि करने पर विजय आदि चार अनुत्तर विमान में तेंतीस सागर की उत्कृष्ट आयु होती है। विजयादि चार की जघन्य आयु इकतीस सागर की है। सर्वार्थसिद्ध की अजघन्य-अनुत्कृष्ट आयु तेंतीस सागरोपम की है ।।११४३-४४।।।
सौधर्म और ईशान देवलोक के देवों की जघन्य स्थिति क्रमश: एक पल्योपम तथा साधिक एक पल्योपम की है। तत्पश्चात् पूर्व देवलोक की उत्कृष्ट स्थिति उत्तर देवलोक की जघन्य स्थिति समझना। इस प्रकार जघन्य स्थिति इकतीस सागर की होती है।
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