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प्रवचन-सारोद्धार
१९५
25.00
-विवेचनजीव
उत्कृष्ट
जघन्य १. विकलेन्द्रिय, असंज्ञी-तिर्यंच-पञ्चेन्द्रिय का
एक समय २. गर्भज-तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय व गर्भज मनुष्य का १२ मुहूर्त एक समय ३. संमूर्च्छिम मनुष्य का
२४ मुहूर्त एक समय • पूर्वोक्त जीवों का मृत्यु-विरह, जन्म-विरह की तरह जानना ॥११२४ ।।
विकलेन्द्रिय, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंच, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंच, एक समय में १-२-३ यावत् संख्याता-असंख्याता जन्मते हैं और मरते हैं। यहाँ असंख्याता, गर्भज व संगुळूम दोनों को मिलाकर समझना चाहिये ॥११२५-२७ ॥
१९४ द्वार:
स्थिति
भवणवइवाणमंतरजोइसियविमाणवासिणो देवा । दस अट्ठ पंच छव्वीस संखजुत्ता कमेण इमे ॥११२८ ॥ असुरा नागा विज्जू सुवन्न अग्गी य वाउ थणिया य। उदही दीव दिसाविय दस भेया भवणवासीणं ॥११२९ ॥ पिसाय भूया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा। महोरगा य गंधव्वा अट्ठविहा वाणमंतरिया ॥११३० ॥ अणपन्निय पणपन्निय इसिवाइय भूयवाइए चेव। कंदिय तह महकंदिय कोहंडे चेव पयगे य ॥११३१ ॥ इय पढमजोयणसए रयणाए अट्ठ वंतरा अवरे। तेसु इह सोलसिंदा रुयगअहो दाहिणुत्तरओ ॥११३२ ॥ चंदा सूरा य गहा नक्खत्ता तारया य पंच इमे। एगे चलजोइसिया घंटायारा थिरा अवरे ॥११३३ ॥ सोहंमीसाण सणंकुमार माहिंद बंभलोयभिहा। लंतय सुक्क सहस्सार आणयप्पाणया कप्पा ॥११३४ ॥ तह आरण अच्चुया विहु इण्हि गेविज्जवरविमाणाई। पढमं सुदरिसणं तह बिईयं सुप्पबुद्धंति ॥११३५ ॥
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