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प्रवचन-सारोद्धार
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(३) वादी–वादी, प्रतिवादी, सभ्य और सभापति रूप चतुरंग पर्षदा के समक्ष प्रतिपक्ष के खंडन-पूर्वक स्वपक्ष की स्थापना करने वाले वादी हैं। वाद लब्धि संपन्न होने से जिनका वाक्-चातुर्य वाचाल वादीसमूह के द्वारा कदापि निस्तेज नहीं होता है।
(४) नैमित्तिक त्रैकालिक लाभालाभ के प्रतिपादक शास्त्र के ज्ञाता। (५) तपस्वी-उग्र, वीर और घोर तप करने वाले ।
(६) विद्यावान वज्रस्वामी की तरह प्रज्ञप्ति आदि १६ विद्यादेवियाँ या शासनदेव जिनके सहायक हों।
(७) सिद्ध–पादलिप्ताचार्य की तरह अंजन, पादलेप, तिलक, वशीकरण, वैक्रिय आदि सिद्धियों के स्वामी।
(८) कवि- अत्यन्त रसमय नई-नई रचनाओं को करने वाले, विविध भाषामय गद्य एवं पद्य के रचयिता।
देशकालोचित साधनों के द्वारा शासन की प्रभावना करने वाले प्रभावक कहलाते हैं।
यद्यपि शासन स्वयंप्रकाश है, परन्तु ये प्रभावक देश-काल के अनुसार अपनी विशिष्ट शक्तियों से शासन की प्रभावना में सहायक बनते हैं। इन प्रभावकों के द्वारा की गई प्रभावना स्व-पर के सम्यक्त्व को निर्मल करती है। अन्यत्र-अइसेसइड्डि धम्मकहि वाई आयरिय खवग नेमित्ति ।
विज्जा रायागणसंमया य तित्थपभावंति । अतिशेषर्द्धि-अवधि, मन:पर्यव, आमर्ष-औषधि आदि रूप अतिशय ऋद्धि सम्पन्न । राजसम्मत्त-नृपप्रिय ।
गणसम्मत्त-महाजनों से मान्य ॥९३४ ।। ५ भूषण-सम्यक्त्व को देदीप्यमान करने वाले उत्तम गुण।
(१) जैनशासन में कुशलता-जैनशासन के रहस्य को अच्छी तरह जानने वाला ऐसा व्यक्ति दूसरों को प्रतिबोध कर धर्मी बना सकता है।
(२) शासनप्रभावना-प्रवचन, धर्मकथा आदि पूर्वोक्त आठ प्रकारों के द्वारा जैनशासन की प्रभावना करना।
प्रश्न-यह बात प्रभावकता के अन्तर्गत आ जाती है, फिर यहाँ क्यों कही?
उत्तर-स्व-पर-उपकारक एवं तीर्थंकर नाम-कर्म का कारण होने से शासन प्रभावनारूप भूषण की विशिष्टता बताने के लिये इसे पुन: कहा।
(३) आयतन आसेवना-इसके दो भेद हैं
१. द्रव्य आयतन-जिनगृहादि की सेवा करना। आयतन अर्थात् सिद्धान्त सम्मत जिन मन्दिर आदि स्थान।
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