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प्रवचन - सारोद्धार
१. जलचर (गर्भज सम्मूर्च्छिम पर्याप्ता)
२. उरपरिसर्प (गर्भज पर्याप्ता)
१००० योजन
१००० योजन
६ को
२ से ९ को
२ से ९ धनुष
२ से ९ को
२ से ९ योजन
२ से ९ धनुष
• जघन्य शरीरमान उत्पत्ति के समय होता है।
I
३. चतुष्पद (गर्भज पर्याप्ता)
४. भुजपरिसर्प (गर्भज पर्याप्ता)
५. भुजपरिसर्प ( सम्मूर्च्छिम पर्याप्ता)
६. चतुष्पद ( सम्मूर्च्छिम पर्याप्ता)
७. उरपरिसर्प (सम्मूर्च्छिम पर्याप्ता)
८. खेचर (गर्भज व सम्मूर्च्छिम)
पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के २० भेद
१. जलचर
२. स्थलचर
३. खेचर
पञ्चेन्द्रिय मनुष्य
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कुल मिलाने से ४ + १२ + ४ = २० भेद हुए ।
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट
उत्कृष्ट अवगाहना
३ को
अंगुल का असंख्यातवां भाग
प्रमाण
अंगुल
का
असंख्यातवां
भाग
1
इसके गर्भज व संमूर्च्छिम दो भेद हैं। इनमें से प्रत्येक के पर्याप्ता - अपर्याप्ता दो-दो भेद हैं । २ x २ = ४ भेद
इसके चतुष्पद, उरपरिसर्प व भुजपरिसर्प तीन भेद हैं। तीनों के गर्भ व समूर्च्छिम दो-दो भेद हैं । इनमें से प्रत्येक के पर्याप्ता और अपर्याप्ता दो-दो भेद हैं- ३ x २ x २ = १२ भेद हैं ।
जघन्य
शरीर
गर्भज व संमूर्च्छिम द्विविध हैं। पर्याप्ता अपर्याप्ता के भेद से प्रत्येक के दो-दो भेद हैं २ x २ = ४ भेद ।
१. मनुष्य (गर्भज पर्याप्ता)
२. मनुष्य ( सम्मूर्च्छिम) तथा सभी
अपर्याप्ता की अवगाहना पूर्वोक्त अवगाहना प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहना- संस्थानपद के अनुसार कही गई है।
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जघन्य अवगाहना
अंगुल
का
असंख्यातवां भाग
है I
प्रश्न- प्रत्येक वनस्पतिकाय के शरीर का परिमाण साधिक एक हजार योजन का है। इनके शरीर का माप ‘उस्सेहपमाणओ मिणसु देहं' इस आगम वचन के अनुसार उत्सेधांगुल से किया जाता है तथा जहाँ ये वनस्पतियाँ उत्पन्न होती है उन समुद्र, पद्मद्रह आदि का माप प्रमाणांगुल से माना जाता है । ऐसी स्थिति में प्रमाणांगुल से एक हजार योजन गहरे समुद्र, पद्मद्रह आदि में उत्पन्न होने वाले कमलनाल आदि की लंबाई उत्सेधांगुल की अपेक्षा से बहुत अधिक (१००० योजन से बहुत अधिक) होगी क्योंकि
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