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प्रवचन-सारोद्धार
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करके उन पर नरक के जीवों को चलाते हैं अथवा वे पत्ते उन
पर गिराकर उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करते हैं। (x) धनु
- जो अर्ध-चन्द्रादि आकार वाले बाण फेंककर नारकों के कान,
नाक आदि का छेदन करते हैं। (xi) कुम्भ
- जो नारकों को कुंभी में डालकर पकाते हैं। (xii) वालुक
- कदम्ब पुष्प के आकार वाली या वज्र समान आकार वाली जलती
रेत पर चने की तरह नरक के जीवों को सेकते हैं। (xiii) वैतरणी
- गर्म किया हुआ रक्त या पिघले हुए शीशे से भरी हुई नदी में
नरक के जीवों को अत्यन्त कदर्थना पूर्वक तिराते हैं। (xiv) खरस्वर
- जो वज्र-तुल्य तीक्ष्ण काँटों से व्याप्त शाल्मली वृक्ष पर नरक के
जीवों को चढ़ाकर तीव्र आवाज करते हैं। (xv) महाघोष
- जो भय से भागते हुए नारकों को घोर आवाज करके रोकते हैं। • भगवती सूत्र में महाकाल के पश्चात् नौवां असि है (जो नारकों को तलवार से काटता है)
१०वां असिपत्र है। शेष पर्ववत है अर्थात धन के स्थान पर भगवती में असि नाम है। • पूर्व भव में पंचाग्नि तप आदि अज्ञान कष्ट को करने वाले मनुष्य मरकर अति निर्दय, पापात्मा
परमाधामी बनते हैं। आसुरी स्वभाव के कारण प्रथम तीन नरक में ये परमाधामी, नरक के
जीवों को विविध प्रकार की वेदना देते हैं। • अत्यन्त दुःख से पीड़ित नरक के जीवों को देखकर ये परमाधामी, परस्पर झगड़ने वाले मुर्गे,
कुत्ते, सांड आदि को देखकर हर्षित होने वाले मुनष्यों की तरह अट्टहास्य करते हैं, उछलते हैं, कूदते हैं। नारकों की कदर्थना को देखकर उन्हें जितना आनन्द आता है, उतना आनन्द रमणीय नाटक देखने में भी नहीं आता है ॥१०८५-८६ ।।
१८१ द्वार :
लब्धि-संभव
300030828662-255888352605250888888888
तिसु तित्थ चउत्थीए केवलं पंचमीए सामन्नं । छट्ठीए विरइऽविरई सत्तमपुढ़वीए सम्मत्तं ॥१०८७ ॥ पढमाओ चक्कवट्टी बीयाओ रामकेसवा हुंति । तच्चाओ अरहंता तहांतकिरिया चउत्थीओ ॥१०८८ ॥ उवट्टिया उ संता नेरइया तमतमाओ पुढवीओ। न लहंति माणुसत्तं तिरिक्खजोणिं उवणमंति ॥१०८९ ॥
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