________________
प्रवचन - सारोद्धार
१८२ द्वार :
(i)
(ii)
(iii)
असन्नी खलु पढमं दोच्चं च सरिसिवा तइय पक्खी । सीहा जंति चउत्थि उरगा पुण पंचमि पुढविं ॥ १०९१ ॥ छट्ठि च इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तमिं पुढविं । एसो परमुवाओ बोद्धव्वो नरयपुढवीसु ॥१०९२ ॥ वालेसु य दाढीसु य पक्खीसु य जलयरेसु उववन्ना । खिजाउठिया पुणोऽवि नरयाउया हुंति ॥ १०९३ ॥ -गाथार्थ
कौन जीव किस नरक में जाता है ? असंज्ञी जीव प्रथम नरक में, सरीसृप द्वितीय नरक पर्यन्त, पक्षी तृतीय नरक पर्यन्त सिंह चार नरक पर्यन्त, सर्प पाँच नरक पर्यन्त, स्त्रियाँ छः नरक पर्यन्त तथा मानव और मत्स्य सात नरक पर्यन्त माने जाते हैं। इस प्रकार नरक का उत्पाद समझना चाहिये ।। १०९१-९२ ॥
नरक में से निकलकर संख्याता आयु वाले सांप, सिंह, गृद्ध तथा मत्स्य आदि बनकर पुनः नरक में उत्पन्न होते हैं ।। १०९३ ।।
-विवेचन
असंज्ञी ( संमूर्च्छिम) पर्याप्ता पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच
गर्भज भुजपरिसर्प (गोधा, नोलिया आदि ) गर्भज-पक्षी (गृध आदि)
(iv) गर्भज चतुष्पद (सिंह आदि )
(v)
गर्भ उरपरिसर्प (सर्प आदि)
(vi) स्त्री (स्त्रीरत्न आदि)
(vii) गर्भज जलचर (मत्स्य आदि) और मनुष्य
Jain Education International
१७७
उपपात
For Private & Personal Use Only
पहली नरक में
दूसरी नरक पर्यंत
तीसरी नरक पर्यंत
चौथी नरक पर्यंत
पाँचवी नरक पर्यंत
छट्ठी नरक पर्यंत सातवीं नरक पर्यंत
यह आगति उत्कृष्ट समझना । जघन्यतः रत्नप्रभा के प्रथम प्रतर तक और मध्यम रूप से अपने उत्कृष्ट उत्पाद से पूर्व की नरक तक उत्पन्न होते हैं ।
• विशेष - नरक से निकलकर जीव संख्याता आयुष्य वाले सांप, सिह, गीध, मत्स्य आदि में उत्पन्न होते हैं । वहाँ क्रूरता पूर्वक जीव वधादि करने से पुन: नरक में जाते हैं । यह बहुमत की अपेक्षा से घटित होता है। ऐसे तो सांप आदि भी सम्यक्त्व को प्राप्त करके शुभ गति में जाते हैं ॥१०९१-९३ ॥
www.jainelibrary.org