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द्वार १५७
की पीड़ा को पाप समझता है, वैसे अपनी पीड़ा को भी पाप समझता है, कहा है “भावियजिणवयणाणं, ममत्तरहियाण नत्थि हु विसेसो। अप्पाणंमि परंमि य, तो वज्जे पीडमुभओऽवि।" ऐसी स्थिति में पूर्वोक्त मरण आत्म-पीड़न रूप होने से उन्हें स्वीकार करना आगम विरुद्ध है तथा आत्मा पीड़ित न बने इसलिये तो भक्त-परिज्ञादि मरण स्वीकारने से पहले संलेखना आदि करना अनिवार्य बताया है। इस तरह मरने से शासन की निंदा भी होगी अत: इस प्रकार की मृत्यु आगम-सम्मत कैसे हो सकती है?
उत्तर-धर्म पर लगे हुए लांछन को धोने के लिये तथा धर्म संकट की स्थिति में बचाव के अन्य उपाय न होने पर अगत्या पूर्वोक्त मरण को स्वीकारना भी शास्त्र-सम्मत है। जैसे उदायी राजा की हत्या के पश्चात् धर्म की निन्दा के भय से आचार्य भगवन्त ने भी आत्महत्या का मार्ग अपना लिया था ॥१०१६ ॥
१५. भक्त-परिज्ञा मरण भक्त-परिज्ञा अर्थात् भोजन-विषयक ज्ञान। यह दो प्रकार का है(i) ज्ञ-परिज्ञा और (ii) प्रत्याख्यान परिज्ञा ।
(i) ज्ञ-परिज्ञा–इस जीव ने खाने की लालसा के कारण अनेक पाप किये हैं। भोजन के विषय में इस प्रकार का चिंतन करना ज्ञ-परिज्ञा है।
(ii) प्रत्याख्यान-परिज्ञा–ज्ञ-परिज्ञापूर्वक चतुर्विध-आहार, बाह्य-उपधि, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि अन्तरंग-परिग्रह एवं त्रिविध-आहार का यावज्जीव-त्याग कर मत्य का वरण करना प्रत्याख्यान-परिज्ञा
१६. इंगिनी-मरण-उठने-बैठने की निश्चित मर्यादा रखते हुए, अनशन-पूर्वक मृत्यु का वरण करना इंगिनी-मरण है।
भक्त-परिज्ञा मरण में चतुर्विध या त्रिविध आहार का त्याग होता है। शरीर की सेवा-शुश्रूषा साधक स्वयं कर सकता है या दूसरों से भी करवा सकता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा-आ सकता है, किंतु इंगिनी-मरण में साधक निश्चित स्थान को छोड़कर एक कदम भी इधर-उधर नहीं जा सकता। इस मरण में दूसरों से सेवा करवाना सर्वथा निषिद्ध है। यथासमाधि स्वयं ही स्वयं का काम करता है।
१७. पादपोपगमन—जैसे वृक्ष टूट कर गिरने के बाद भूमि सम हो या विषम वह पड़ा ही रहता है, वैसे साधक का एकबार सम या विषम स्थान पर सोने के बाद हिले-डुले बिना ऐसी ही स्थिति में मरना, पादपोपगमन मरण कहलाता है।
अन्तिम तीन-मरण, धृति (संयम के प्रति स्थिरता) और संघयणयुक्त आत्मा ही स्वीकार कर सकते हैं, कहा है
धीरेणवि मरियव्वं, कापुरिसेणावि अवस्समरियव्वं ।
तम्हा अवस्समरणे, वरं खु धीरत्तणे मरिउं ।। अर्थ—धीर पुरुष भी मरते हैं व कायर पुरुष भी मरते हैं । जब मृत्यु अवश्यंभावी है तो धीरतापूर्वक
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