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द्वार १७८
उत्तर–सातवीं नरक के जीवों का सम्पर्क सदा कृष्ण-लेश्या के द्रव्यों के साथ ही रहता है। तेजो-द्रव्य का सम्पर्क तो मात्र आकार या प्रतिबिंब रूप से ही होता है। वह भी यदा-कदा अल्प-समय के लिये। जबकि कृष्ण-लेश्या के द्रव्य तेजो-लेश्या के सम्पर्क काल में भी अपने स्वरूप में विद्यमान रहते हैं। इसीलिए सूत्र में सातवीं नरक के जीवों में केवल कृष्ण-लेश्या ही बताई गई है।
उपर संगम के उपसर्ग को अघटित बताया वह भी ठीक नहीं है। पूर्व कथन के अनुसार वह भी सत्य घटित हो जाता है। प्रतिनियत तेजो-लेश्या के द्रव्यों का सम्पर्क होने पर भी आकार एवं प्रतिबिंब रूप से यदा-कदा कृष्ण-लेश्या का भी संभव रहता है। उस समय अप्रशस्त परिणाम होने से उपसर्ग करने की बात घटित हो सकती है।
___भावपरावर्तन की अपेक्षा नारक और देवों में छ: ही लेश्यायें होती हैं। इस कथन का नारक और देवों में तीन लेश्या मानने वाले आगम वचन के साथ विरोध होता है। यह बात भी पूर्वोक्त मान्यता से असत्य प्रमाणित हो जाती है, क्योंकि आकार या प्रतिबिंब रूप से भले अन्यान्य लेश्यायें आती जाती हैं, किन्तु सूत्र-सम्मत लेश्या के द्रव्य तो उस समय भी अपने स्वरूप में विद्यमान रहते ही हैं और उन लेश्याओं के परिणाम नष्ट हो जाने के बाद भी वे अपने स्वरूप में यथावस्थित रहते हैं। इस प्रकार प्राय: अवस्थित होने के कारण सातवीं नरक में तीन लेश्याओं का होना भी संग है तथा आकार एवं प्रतिबिंब के आधार से सभी लेश्यायें नरक एवं देव में घट सकती हैं। इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है।
देव और नारक की द्रव्य लेश्यायें बाह्य-वर्ण रूप न होकर कृष्णादि द्रव्य रूप हैं। इसका सबल प्रमाण है भगवती का वह पाठ, जिसमें वर्ण की चर्चा करने के पश्चात् लेश्या की चर्चा की गई है। यदि द्रव्य-लेश्यायें बाह्य-वर्ण रूप होती तो वर्ण की चर्चा से अलग लेश्या की चर्चा करना निरर्थक हो
जाता।
देखें-भगवतीसूत्र १-२-२१ सूत्र । इसमें प्रथम नारकों के वर्ण की चर्चा करने के पश्चात् लेश्या के बारे में पृथक् चर्चा की है। यथा--
हे भगवन्त ! नरक के जीव समानवर्ण वाले हैं? हे गौतम ! ऐसा नहीं है। हे भगवन् ! ऐसा नहीं होने का क्या कारण है ? हे गौतम ! नरक के जीव दो प्रकार के हैं—पूर्वोत्पन्न और पश्चात् उत्पन्न। इनमें से जो पूर्वोत्पन्न हैं वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं और जो पश्चात् उत्पन्न हैं वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इसीलिए कहा गया है कि सभी नरक के जीव समान वर्ण वाले नहीं होते।
इस प्रकार वर्ण का स्वरूप बतलाने के पश्चात् लेश्या का स्वरूप बताते हैं। यथा
हे भगवन् ! नरक के जीव समान लेश्या वाले हैं? हे गौतम ! ऐसा नहीं है। हे भगवन् ! ऐसा नहीं होने का क्या कारण है ? हे गौतम ! नरक के जीव दो प्रकार के हैं। पूर्वोत्पन्न और पश्चात् उत्पन्न ।
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