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प्रवचन - सारोद्धार
इसी प्रकार औदारिक शरीर सम्बन्धी भोगों का तीन करण व तीन योग से त्याग करना = ९ भेद । ९ + ९ = १८ भेद ब्रह्मचर्य के ।
दिव्यात् कामरतिसुखात्, त्रिविधं त्रिविधेन विरतिरिति नवकम् ।
औदारिकादपि तथा, तद् ब्रह्मष्टादशविकल्पम् ।
अर्थात् मन से वैक्रिय सम्बन्धी अब्रह्म का सेवन १. न करूं २. न कराऊं और न अनुमोदूं । इसी प्रकार वचन और काया से कुल ९ ।
इसी तरह औदारिक के भी समझना ९ + ९ = १८
१६९ द्वार :
कामो उवीसविहो संपत्तो खलु तहा असंपत्तो । चउदसहा संपत्तो दसहा पुण होअसंपत्तो ॥ १०६२ ॥ तत्थ असंपत्तेऽत्था चिंता तह सद्ध संभरण मेव । विक्कवय लज्जनासो पमाय उम्माय तब्भावो ॥१०६३ ॥ मरणं च होइ दसमो संपत्तंपि य समासओ वोच्छं । दिट्ठीए संपाओ दिट्ठीसेवा य संभासो ॥ १०६४ ॥ हसिय ललिओवगूहिय दंत नहनिवाय चुंबणं चेव । आलिंगण मादाण कर सेवणऽणंगकीडा य ॥१०६५ ॥ -गाथार्थ
काम के २४ प्रकार — काम के २४ प्रकार हैं। मुख्य दो भेद हैं। असंप्राप्त और संप्राप्त । असंप्राप्त के १० भेद हैं और संप्राप्त के १४ भेद हैं ।। १०६२ ।।
८. उन्माद ९. तद्भाव और १०. मृत्यु- ये दस भेद हैं। ३. संभाषण ४. हास्य ५. ललित ६. अवगूहन ७
असंप्राप्त के १. अर्थ २. चिंता ३. श्रद्धा ४. स्मरण ५ विकल्प ६. लज्जानाश ७. प्रमाद संप्राप्त काम के १. दृष्टिसंपादन २. दृष्टिसेवा दंतक्षत ८. नखक्षत ९. चुंबन १०. आलिंगन ११. आदान १२. करसेवन १३. आसेवन और १४. अनंगक्रीड़ा - ये १४ भेद हैं ।। १०६३-६५ ।।
-विवेचन
१ काम- इसके दो भेद हैं- (i)
संयोग और (ii) विप्रयोग |
• संयोग — कामियों के परस्पर संयोग से उत्पन्न सुख । यह १४ प्रकार का है
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(i)
दृष्टिपात (ii) दृष्टिसेवा
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॥१०६१ ॥
काम-भेद
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स्त्री के विकारवर्धक स्तनादि अंगों का अवलोकन करना । हाव-भाव से युक्त दृष्टि मिलाना ।
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