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प्रवचन-सारोद्धार
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८. मण्यंगा-स्वाभाविक परिणाम से परिणत मणिमय अनेकविध आभूषण जैसे कड़े, कुण्डल, मुकुट, बाजूबन्द, हार आदि से फलों की तरह सुशोभित ।
९. गेहाकार-इन कल्पवृक्षों का स्वाभाविक परिणमन घरों की तरह होता है। उन्नत प्राकार, सीढियाँ, चित्रशाला बड़े-बड़े गवाक्ष, अनेक गुप्त व प्रकट अन्तर गृह, अत्यन्त स्निग्ध आंगन वाले महलवत् घरों से युक्त ये कल्पवृक्ष होते हैं। जिनमें युगलिक निवास करते हैं।
१०. अनग्ना—विविध प्रकार के वस्त्रों को देने वाले जिससे निवास करने वाले लोग नग्न नहीं रहते वे 'अनग्ना' कल्पवृक्ष हैं। इन कल्पवृक्षों में स्वाभाविक रूप से देवदूष्य की तरह सुन्दर, कोमल व मनोहर अनेक प्रकार के वस्त्र पैदा होते हैं ॥१०६७-७० ।।
१७२ द्वार : |
नरक
घम्मा वंसा सेला अंजण रिट्ठा मघा य माघवई। नरयपुढवीण नामाइं हुंति रयणाइं गोत्ताई ॥१०७१ ॥ रयणप्पह सक्करपह वालुयपह पंकपहभिहाणाओ। धूमपह तमपहाओ तह महातमपहा पुढवी ॥१०७२ ॥
-गाथार्थनरक–१. घम्मा २. वंसा ३. शैला ४. अंजना ५. रिष्टा ६. मघा ७. माघवती-ये नरकपृथ्वी के नाम हैं।
१. रत्नप्रभा २. शर्कराप्रभा ३. वालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तम:प्रभा तथा ७. महातम:प्रभा-ये नरकपृथ्वी के गोत्र हैं ॥१०७१-७२ ।।
-विवेचननाम अर्थ निरपेक्ष किन्तु वस्तु का बोध कराने वाला, अनादि काल से प्रसिद्ध नाम कहलाता
गोत्र-अर्थ सापेक्ष, अन्वर्थक वस्तु का बोध कराने वाला गोत्र है। गो = अपने अभिधायक शब्द की, त्राणाद् = यथार्थता का पालन करने वाला।
जैसे—घम्मा, वंशा आदि नरक के नाम अर्थ निरपेक्ष होते हए भी अनादिकाल से प्रथम, द्वितीय आदि नरक का बोध कराते हैं अत: वे नाम हैं। परन्तु गोत्र जैसे 'रत्नप्रभा' यह प्रथम नरक के लिये इसलिये प्रयुक्त हुआ कि प्रथम नरक रत्नों की अधिकता वाली है। इस तरह सभी नाम-गोत्रों के लिये समझना चाहिये।
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