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प्रवचन - सारोद्धार
• शुद्ध पुंज - सम्यक्त्व मोहनीय रूप है। जिन-धर्म में रुचि का कारण होने से शुद्ध 1 अर्द्ध शुद्ध-पुंज - मिश्र - मोहनीय रूप है। जिन धर्म के प्रति उदासीनता का कारण होने से अर्द्धहै।
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- शुद्ध
• अशुद्ध-पुंज - मिथ्यात्व - रूप है। सुदेव, सुगुरु व सुधर्म के प्रति अरुचि का कारण है I कर्मग्रन्थ के मत में – अन्तरकरण के बाद अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण उपशम सम्यक्त्व होता है । उसके बाद निश्चित रूप से जीव क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी, मिश्र-दृष्टि या मिथ्यात्वी बनता है 1
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सिद्धान्त के मत से - अनादि मिथ्या-दृष्टि जीव अध्यवसाय विशेष से ग्रंथि का भेदन करके अपूर्वकरण के द्वारा मिथ्यात्व के तीन भाग करता है । उसके बाद अनिवृत्तिकरण के सामर्थ्य से शुद्ध-पुंज के पुद्गलों का वेदन करने वाला जीव औपशमिक सम्यक्त्व बिना पाये ही सर्वप्रथम क्षायोपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करता है 1
अन्यमतानुसार — यथाप्रवृत्ति वगैरह तीनों करणों के क्रम में अन्तरकरण में औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, परन्तु उसे तीनपुंज करने की आवश्यकता नहीं रहती । औपशमिक सम्यक्त्व का काल पूर्ण होने के बाद जीव का निश्चित पतन होता है और वह निश्चित मिथ्यात्व में जाता है
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प्रश्न- क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की अपेक्षा औपशमिक सम्यक्त्व में विशेष क्या बात है ? क्योंकि दोनों में उदित मिथ्यात्व का क्षय व अनुदित मिथ्यात्व का उपशम होता है ?
उत्तर - क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में मिथ्यात्व का प्रदेशोदय होता है, जबकि औपशमिक सम्यक्त्व में प्रदेशोदय भी नहीं होता ।
अन्यमतानुसार — श्रेणि चढ़ने वाले औपशमिक सम्यक्त्वी को ही मिथ्यात्व का प्रदेशानुभव नहीं होता पर प्रथम बार औपशमिक सम्यक्त्व पाने वाले को तो प्रदेशानुभव होता है ।
प्रश्न- क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में भी मिथ्यात्व का प्रदेशोदय होता है और उपशम भी, तो फिर उपशम सम्यक्त्व में और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में क्या अंतर रहेगा ?
उत्तर— उपशम सम्यक्त्व में सम्यक्त्व मोहनीय के अणु की भी अनुभूति नहीं होती, जबकि क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में सम्यक्त्व मोहनीय का विपाकोदय होता है ।।९४२ - ९४५ ॥
कारक आदि के भेद से भी सम्यक्त्व तीन प्रकार का है।
(i) कारक - देश - काल संहनन के अनुरूप, शक्ति को छुपाये बिना आगमोक्त अनुष्ठान को कराने वाला परिणाम विशेष (यह साधुओं के होता है) है ।
(ii) रोचक — श्रेणिक आदि की तरह जिसके उदय में सद्-अनुष्ठान रुचिकर तो लगते हैं, किन्तु आचरण का भाव पैदा नहीं होता है ।
(iii) दीपक - जिस परिणाम- विशेष से जीव स्वयं तो मिथ्या दृष्टि, अभव्य, जैसे अंगारमर्दक आचार्य की तरह होता है किन्तु धर्मकथा, माया या अतिशय के द्वारा शासन की प्रभावना करता है प्रश्न – मिथ्यादृष्टि को सम्यक्त्वी कैसे कहा जा सकता है ?
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