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मणपज्जवोहिनाणी सुयमइनाणी मरंति जे समणा । छउमत्थमरणमेयं केवलिमरणं तु केवलिणो ॥ १०१५ ॥ गिद्धा भक्खणं गिद्धपिट्ठ उब्बंधणाई वेहासं ।
एए दोन्निवि मरणा कारणजाए अणुन्नाया ॥ १०१६ ॥ भत्तपरिन्ना इंगिणि पायवगमणं च तिन्नि मरणाई । कन्नसमज्झिमट्ठा धिइसंघयणेण उ विसिट्ठा ॥ १०१७ | -गाथार्थ
सत्रह प्रकार के मरण – १. आवीचिमरण २. अवधिमरण ३. आत्यन्तिकमरण ४. वलन्मरण ५. वशार्त्तमरण ६. अन्त: शल्यमरण ७. तद्भवमरण ८. बालमरण ९. पंडितमरण १०. मिश्रमरण ११. छद्मस्थमरण १२. केवलिमरण १३. वैहायसमरण १४. गृध्रपृष्ठमरण १५. भक्तपरिज्ञामरण १६. इंगिनीमरण तथा १७. पादपोपगमनमरण - ये सत्रह प्रकार का मरण है ।। १००६-७ ।।
द्वार १५७
१. आवीचिमरण – प्रतिसमय आयुष्य का घटते जाना आवीचिमरण है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव के भेद से इनके पाँच प्रकार हैं ।। १००८ ।।
२- ३. अवधिमरण और आत्यन्तिक मरण - जिस अवस्था में मृत्यु हुई, पुन: उसी अवस्था मरना अवधिमरण है । जिस अवस्था में मृत्यु हुई उस अवस्था में पुनः कभी नहीं मरना आत्यन्तिक मरण है ।। १००९ ॥
४-५. वलन्मरण और वशार्तमरण - संयम योग से उद्विग्न होकर मरना वलन्मरण है। विषयाधीन होकर पतंगे आदि की तरह मरना वशार्त्तमरण है ।। १०९० ।।
६. अन्त: शल्यमरण — गारवरूप कर्दम में निमग्न जीव दर्शन, ज्ञान और चारित्र के सम्बन्ध में सेवित दोषों को कभी भी गुरु के समक्ष नहीं कहते। ऐसे जीवों का मरण, सशल्य मरण कहलाता
।। १०११ ।।
७. तद्भवमरण – युगलिक मनुष्य तिर्यंच, देव और नारकी को छोड़कर शेष सभी जीवों का तद्भवमरण होता है ।। १०१२ ॥
अवधिमरण, आवीचिमरण, आत्यंतिकमरण इन तीनों को छोड़कर शेष सभी मरण तद्भवमरण पूर्वक होता है, ऐसा समझना चाहिये || १०१३ ||
८-१०. बाल - पंडित एवं मिश्रमरण - अविरतिधारी जीव का बालमरण, विरतिधारी जीव का पंडितमरण तथा देशविरतिधारी जीव का बालपंडितमरण होता है ।। १०१४ ॥
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११-१२. छद्मस्थ और केवलिमरण - मनः पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी तथा मतिज्ञानी श्रमण का मरण छद्मस्थ मरण है । केवलज्ञानी का मरण केवलीमरण है ।। १०१५ ।।
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