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द्वार १४३
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हो जान
उसका विस्तार एक रज्जु के असंख्यातवें भाग जितना रह जाता है, उस खंड को कल्पना द्वारा उठाकर वसनाड़ी की बाँई ओर विपरीत अर्थात् उपर के भाग को नीचे और नीचे के भाग को ऊपर जोड़ना। इस प्रकार निम्न लोकार्द्ध देशोन ४ रज्जु विस्तृत, साधिक ७ रज्जु ऊँचा और मोटाई की अपेक्षा क्वचित् किंचित् न्यून् ७ रज्जु परिमाण वाला और क्वचित् अनियत परिमाण वाला होता है।
____ तत्पश्चात् ऊपरवर्ती अर्धभाग को कल्पना से उठाकर निम्नवर्ती अर्धभाग के ऊपर अर्थात् बाँई तरफ जोड़ना। इस प्रकार क्वचित् ७ रज्जु ऊँचा क्वचित् किंचित् न्यून ७ रज्जु ऊँचा विस्तार की अपेक्षा देशोन ७ रज्जु परिमाण वाला घनीकृत लोक होता है।
घन करने के पश्चात् जहाँ कहीं भी ७ रज्जु से अधिक विस्तार है उसे बुद्धि कल्पना द्वारा लेकर ऊपर नीचे यथोचित जोड़ने पर विस्तार की अपेक्षा से भी लोक पूर्ण ७ रज्जु परिमाण वाला
है। संवर्तित ऊपरवर्ती खंड की मोटाई क्वचित ५ रज्ज है तथा निम्न खंड की मोटाई नीचे यथा संभव देशोन ७ रज्जु है। ऊपरवर्ती खंड की अपेक्षा निम्न खंड की मोटाई देशोन २ रज्जु अधिक है। इसमें से आधी मोटाई ऊपरवर्ती खंड की मोटाई में जोड़ने पर क्वचित मोटाई ६ रज्ज की होती है।
व्यवहार की अपेक्षा यह संपूर्ण घनीकृत लोक ७ रज्जु परिमाण चौकोर आकाश खंड रूप है। व्यवहारनय किंचित् न्यून ७ हाथ आदि परिमाण वाले वस्त्र को भी पूर्ण ७ हाथ परिमाण वाला मानता है तथा वस्तु के एकदेशगत धर्म को संपूर्ण वस्तुगत मान लेता है क्योंकि व्यवहारमय स्थूलग्राही है अत: धनीकृत लोक की सर्वत्र ७ रज्जु की मोटाई व्यवहार नय की अपेक्षा से ही समझना चाहिए। लंबाई चौड़ाई भी जहाँ ७ रज्जु से न्यून है वहाँ इस नय की अपेक्षा से पूर्ण ७ रज्जु समझना चाहिए। इस प्रकार व्यवहार नय की अपेक्षा, लंबाई, चौड़ाई और मोटाई तीनों दृष्टि से ७ रज्जु परिमाण लोक का घन होता है। पट्टी आदि पर रेखांकित करके इसकी स्पष्टता करना चाहिए ॥९१३-९१४ ॥ ____ बुद्धिकल्पना से जहाँ अधिक हैं, वहाँ से खंड लेकर जहाँ न्यून है वहाँ उसे जोड़ने से लोक चारों ओर से चौकोर हो जाता है। इसके ३४३ रज्जु होते हैं। जिस राशि का घन करना हो उस राशि को तीन बार गुणा करने से 'घन' बनता है। कहा है—‘समत्रिराशिहतिर्घन' ७ x ७ = ४१ x ७ = ३४३ राजु ।
यह व्यवहारनयानुसार रज्जु की संख्या है। निश्चय से तो २३९ घनरज्जु होते हैं। निश्चयनय से तो ऊपर से नीचे जो ५६ पंक्तियाँ हैं उनमें जितने-जितने खंड हैं, उनका वर्ग करने से कुल जितनी राशि आती है उसे ६४ से भाग देने पर 'घनरज्जु' की संख्या आती है। वर्ग का अर्थ है समानराशि का अपनी समानराशि से गुणा करने पर जो संख्या आती है वह वर्ग है। जैसे ४ का ४ से गुणा करने पर १६ आते हैं, १६, ४ का वर्ग है। कहा है—'सदृशद्विराशिघातो वर्ग:'। इस प्रकार सर्वसंख्या के वर्ग की कुलराशि = १५२९६ खंड होते हैं। इसके घनरज्जु १५२९६ ’ ६४ = २३९ हैं। कहा है
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