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द्वार १४३
की, पुन: तीन में ८-८ खंडों की, दो में ६-६ खंडों की और दो में ४-४ खंडों की हानि होती है।।९०८॥
अधोलोक में ऊपर से लेकर नीचे तक के खंडों की संख्या—लोक के मध्यभाग से नीचे रत्नप्रभा आदि सात नरकों में ४-४ खंड त्रसनाड़ी के भीतर है और शर्कराप्रभा आदि नरकों में क्रमश: ३-३, २-२ और १-१ खंड त्रसनाड़ी के बाहर है। यह सातवीं नरक तक समझना चाहिए ।।९०९ ॥
सातवीं नरक से लेकर प्रथम रत्नप्रभा नरक तक के तिर्यक् खंडों का परिमाण-सात नरकों के खंडों का परिमाण क्रमश: है-२८, २६, २४, २०, १६, १० और ४॥९१० ।।
अधोलोक में ५१२ खंड हैं तथा ऊर्ध्वलोक में ३०४ खंड हैं। संपूर्ण लोक के कुल मिलाकर ८१६ खंड हैं॥९११॥
ऊर्ध्वलोक व अधोलोक अपने-अपने खंडों के अनुसार कुल कितने राजु परिमाण हैं:-आठ रुचक प्रदेश से नीचे अधोलोक ३२ रज्जु परिमाण तथा ऊपर ऊर्ध्वलोक १९ रज्जु परिमाण है। इस प्रकार कुल मिलाकर लोक ५१ रज्जु परिमाण है ।।९१२ ।।।
ऊर्ध्वलोक में ब्रह्मलोक के समीपवर्ती तथा त्रसनाड़ी की दाहिनी तरफ के ऊपर-नीचे के दोनों खंडों को लेकर बाँई तरफ उलट कर अर्थात् ऊपर का खंड नीचे और नीचे का खंड ऊपर, इस तरह जोड़ना कि त्रसनाड़ी सहित यहाँ का विस्तार सर्वत्र ३ रज्जु परिमाण हो जाये और ऊँचाई सात रज्जु की रहे। पश्चात् अधोलोक में त्रसनाड़ी के बाँई तरफ के एक खंड को कल्पना द्वारा उठाकर त्रसनाड़ी के दाँई तरफ उलट कर जोड़ना तथा ऊपरवर्ती संवर्तित, त्रिरज्जु विस्तृत खंड को अधोलोक के संवर्तित खंड की बाँई ओर जोड़ना ॥९१३-९१४ ॥ . घनीभूत लोक के रज्जु-समचौरस ७ रज्जु परिमाण घनीकृत लोक के रज्जु की संख्या ३४३ है ।।९१५ ।।
६ खंडों में प्रथम के दो देवलोक, चार खंडों में तीसरा चौथा देवलोक, दस खंडों में चार देवलोक, चार खंडों में चार देवलोक तथा चार खंडों में नौ ग्रैवेयक और ५ अनुत्तर विमान हैं ।।९१५ ।।
-विवेचनसातवीं नरक के भूमितल से लेकर सिद्धशिला के उपरवर्ती तल तक यह लोक चौदह रज्जु लंबा है। इसका विस्तार भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न है। जैसे सातवें नरक के अधोभाग में इसका विस्तार देशोन सात रज्जु है। सूत्रकार ने पूरे सात रज्जु ही कहा है, कारण न्यूनता अत्यल्प होने से 'देशोन'नहीं कहा। तत्पश्चात् उत्तरोत्तर एक-एक प्रदेश की वृद्धि होते-होते समभूतला पृथ्वी के पास लोक का विस्तार एक रज्जु हो जाता है। वहाँ से पुन: एक-एक प्रदेश की वृद्धि होते-होते ऊर्ध्वलोक में पाँचवें ब्रह्मदेवलोक के पास लोक का विस्तार पाँच रज्जु परिमाण हो जाता है। यहाँ से एक-एक प्रदेश की हानि होते-होते सिद्धशिला के ऊपर लोकांत के पास लोक का विस्तार पुन: एक रज्जु रह जाता है। प्रथम नरक से असंख्याता क्रोड़ योजन ऊपर सीधे चलने पर लोक का मध्यभाग आता है।
लंबाई में चौदह रज्जु परिमाण इस लोक के तीन भाग हैं—ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिरछालोक । जंबूद्वीप के मध्यभाग में रत्नप्रभा नरक के ऊपर मेरुपर्वत है। उस मेरु के मध्यभाग में आठ प्रदेश वाला 'रुचक ' है । यह रुचक गाय के स्तन के आकार का है। इसके चार प्रदेश ऊपर हैं और चार नीचे हैं। यही रुचक दिशा-विदिशा का प्रवर्तक है और तीन लोकों का विभाजक है। रुचक के ऊपरवर्ती ९०० योजन तथा अधोवी ९०० योजन मिलकर १८०० योजन का तिर्यक्लोक है। तिर्यक्लोक के नीचे
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