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द्वार १३६-१३७
• प्रासुकजल–स्वकाय-शस्त्र (मीठे जल में खाराजल मिलाना, स्वकाय शस्त्र है) व परकाय
शस्त्र (त्रिफला, लौंग, शक्कर आदि डालना) के द्वारा अचित्त बना जल। पूर्वोक्त दोनों ही प्रकार के जल मुनियों को लेना कल्पता है। दोनों ही प्रकार के जल का मुनियों को तीन प्रहर तक उपयोग करना कल्पता है। तदुपरान्त कालातिक्रान्त हो जाने से अकल्प्य बन जाता है। यदि ग्लान, वृद्ध, बालमुनि आदि के लिए दूसरी व्यवस्था न हो तो तीन प्रहर से अधिक भी जल रखा जा सकता है || ग्लानादि के लिये रखे हुए उष्ण-प्रासुक जल का ग्रीष्मऋतु में पाँच प्रहर का काल है अर्थात् ग्रीष्मऋतु में पाँच प्रहर तक उष्ण व प्रासुक जल अचित्त रहता है तत्पश्चात् पुन: सचित्त बन
जाता है। ग्रीष्मकाल अत्यन्त रूक्ष होने से उसमें जल इतने काल बाद सचित्त बनता है। • शीतकाल में स्निग्धता के कारण चार प्रहर के पश्चात् ही जल पुन: सचित्त बन जाता है। • वर्षाऋतु में काल अतिस्निग्ध होने से प्रासुक जल तीन प्रहर के पश्चात् पुन: सचित्त हो जाता
पूर्वोक्त काल के पश्चात् भी यदि जल रखना हो तो उसमें चूना आदि क्षार पदार्थ डालकर रखना चाहिये ताकि वह अचित्त बना रहे ॥८८२ ॥
१३७ द्वार : |
स्त्रियाँ
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तिगुणा तिरूवअहिया तिरियाणं इत्थिया मुणेयव्वा। सत्तावीसगुणा पुण मणुयाणं तयहिया चेव ॥८८३ ॥ बत्तीसगुणा बत्तीसरूवअहिया य तह य देवाणं । देवीओ पन्नत्ता जिणेहिं जियरागदोसेहिं ॥८८४ ॥
-गाथार्थतिर्यंच, मनुष्य और देव से कितनी अधिक उनकी स्त्रियाँ होती हैं ? -तिर्यंच पुरुष की अपेक्षा तिर्यंच स्त्रियाँ तीन गुणी और तीन अधिक हैं। मनुष्य की अपेक्षा मानवी सत्तावीस गुणी और सत्तावीस अधिक हैं। देवों की अपेक्षा देवियाँ बत्तीस गुणी और बत्तीस अधिक हैं, ऐसा वीतराग परमात्मा ने कहा है।।८८३-८८४ ॥
-विवेचन• तिर्यंच पुरुष की अपेक्षा तिर्यंच स्त्रियाँ तीन गुणा हैं। • मनुष्य की अपेक्षा स्त्रियाँ सत्तावीस गुणा अधिक हैं। • देव की अपेक्षा देवियाँ बत्तीस अधिक बत्तीस गुणा है ।८८३-८८४ ।।
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