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प्रथमः पादः
गंठी, ऐसे ये अञ्जलि इत्यादि शब्द हैं। गड्डा और गड्डो ये शब्द तो संस्कृत के समान सिद्ध हुए हैं। (सूत्र में ) इम (न्) ऐसा नियमन होने से, ( भाववाचक संज्ञा) सिद्ध करने वाले त्व ( प्रत्यय ) का आदेश स्वरूप में आने वाला इमा ( डिमा) प्रत्यय तथा पृथु इत्यादि शब्दों में लगने वाला इमन् प्रत्यय, इनका ग्रहण होता है । व ( प्रत्यय ) के आदेश स्वरूप में आनेवाला इमा ( इमन ) प्रत्यय लगकर बने हुए शब्द स्त्रीलिंग में ही होते हैं, ऐसा कुछ लोगों का मत है।
बाहोरात् ॥ ३६ ॥ बाहुशब्दस्य स्त्रियामाकारान्तादेशो भवति । बाहाए जेण' धरिओ एक्काए । स्पियामित्येव । वामेबरो२ बाहू।
बाहु शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होने पर, उसके अन्त में आकार आदेश होता है । उदा.-बाहाए... एक्काए । (वाह शब्द ) स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होने पर ही ( उसके मन्त में आकार आदेश होता है; वह पुल्लिग में प्रयुक्त होने पर, उकारान्त ही रहता है । उदा:-) वामेमरो बाहू ।
॥अतो डो विसर्गस्य ।। ३७ ॥ संस्कृतलक्षणोत्पन्नस्यातः परस्य विसर्गस्य स्थाने डो इत्यादेशो भवति । सर्वतः सव्वओ । पुरतः पूरओ। अग्रतः अग्गो । मार्गतः मग्गओ। एवं सिद्धावस्थापेक्षया । भवत: भवयो। भवन्तः भवन्तो । सन्तः सन्तो । कुतः कुदो।
संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार उत्पन्न हुए और अकार के आगे आने वाले विसर्ग के स्थान पर ओ ( डो) आदेश होता है। उदा.--सर्वत: .." मग्गओ। (संस्कृत शब्दों की ) सिद्धावस्था की अपेक्षा से वर्णान्तर इसी प्रकार होता है :-- भवतः... ." "कुदो।
॥ निष्प्रती ओत्परी माल्यस्थोर्वा ॥ ३८ ॥ निर प्रति इत्येतौ माल्यशब्दे स्थाधातौ च परे यथासंख्यं ओत् परि इत्येवं रूपौ वा भवतः। अभेदनिर्देशः सर्वादेशार्थः । ओभालं निम्मल्लं । ओमालयं वहइ । परिट्ठा "पइट्ठा । परिट्ठिअं ६पइट्ठिअं।
निर ( निस् ) और प्रति ( उपसर्गों) के मागे माल्य शब्द तथा स्था धातु होने पर, विकल्प से उनके रूप अनुक्रम से ओ और परि होते हैं। ( सूत्र में 'निष्प्रती
ओत्परी ऐसा ) अभेद-निर्देश 'सम्पूर्ण शब्द को आदेश होता है, यह दिखाने के लिए है। उदा.---ओमालं. पइट्ठि । १. बाहुना येन धृत एकेन । २. वामेतरः बाहुः । ३. निर्मास्य ।
४. निर्माल्यं वहति । ५. प्रतिष्ठा ।
६. प्रतिष्ठित ।
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