Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौदहवां कषाय पद - कषायों के उत्पत्ति के कारण
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उत्तर - हे गौतम! क्रोध को चार पर प्रतिष्ठित कहा गया है। वह इस प्रकार हैं - १. आत्म प्रतिष्ठित २. पर प्रतिष्ठित ३. उभय-प्रतिष्ठित और ४. अ-प्रतिष्ठित। इसी प्रकार नैरयिक जीवों से लेकर वैमानिक देवों तक चौवीस ही दण्डकवर्ती जीवों के विषय में दण्डक (आलापक) कह देना चाहिये। क्रोध की तरह मानं की अपेक्षा से, माया की अपेक्षा से और लोभ की अपेक्षा से भी प्रत्येक का एक-एक दण्डक कह देना चाहिये। अर्थात् क्रोध पर चौबीस, मान पर चौबीस, माया पर चौबीस और लोभ पर चौबीस, इस प्रकार प्रत्येक कषाय पर चौबीस-चौबीस दण्डक कह देने चाहिए।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चार कषायों को चार-चार स्थानों पर प्रतिष्ठित (आधारित) कहा गया है। वे इस प्रकार हैं - १. आत्म प्रतिष्ठित - अपने आचरण का ऐहिक कुफल जानकर अपनी आत्मा पर क्रोध करना। २. पर प्रतिष्ठित - किसी के गाली देने पर उस पर क्रोध करना। ३. तदुभय प्रतिष्ठितदोनों यानी अपनी आत्मा पर और दूसरे पर क्रोध करना। ४. अप्रतिष्ठित - क्रोध वेदनीय कर्म के उदय होने पर निष्कारण क्रोध करना। इस प्रकार अधिकरण के भेद से क्रोध चार प्रकार का कहा गया है। अब कारण के भेद से क्रोध के भेद बताते हैं -
कषायों के उत्पत्ति के कारण ..कइहिं णं भंते! ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवइ? ___गोयमा! चउहि ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवइ, तंजहा - खेत्तं पडुच्च, वत्थु पड्डच्च, सरीरं पडुच्च, उवहिं पडुच्च। एवं जेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवं माणेण वि मायाए वि, लोभेण वि, एवं एए वि चत्तारि दंडगा॥४२१॥
कविन शब्दार्थ - कोहुप्पत्ती- क्रोधोत्पत्ति, पडुच्च - प्रतीत्य-अपेक्षा से।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कितने स्थानों (कारणों) से क्रोध की उत्पत्ति होती है ? .. उत्तर - हे गौतम! चार स्थानों (कारणों) से क्रोध की उत्पत्ति होती है, वे इस प्रकार हैं - १. क्षेत्र - खेत या खुली जमीन को लेकर २. वास्तु - मकान आदि को लेकर ३. शरीर के निमित्त से और ४. उपधि उपकरणों-साधनसामग्री के निमित्त से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक क्रोधोत्पत्ति के विषय में प्ररूपणा करनी चाहिये। क्रोधोत्पत्ति के विषय में जैसा कहा है, उसी प्रकार मान, माया और लोभ की उत्पत्ति के विषय में भी उपर्युक्त चार कारण कहने चाहिये। इस प्रकार ये चार दण्डक होते हैं।
विवेचन - चार कारणों से क्रोध आदि उत्पन्न होते हैं - क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि। क्षेत्र यानी खेत कुआ आदि खुली जमीन । वास्तु यानी हाट हवेली आदि ढकी जमीन। शरीर यानी दास दासी आदि। उपधि-भण्डोपकरण, आभूषण, वस्त्र आदि। इन चार बोलों से क्रोध आदि की उत्पत्ति होती है।
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