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यदि तुम मुझे समझते हो तो मैं सदा ही लाओत्सु पर बोल रहा हूं। यदि तुम मुझे नहीं समझते,
तो जब मैं लाओत्सु पर बोलता हूं वह भी किसी काम का न होगा। असल में मैं किसी दूसरे के साथ कभी न्यायपूर्ण नहीं होता-पतंजलि, जीसस, महावीर, बद्ध। नहीं, मैं बिलकुल न्यायपूर्ण नहीं होता, मैं हो नहीं सकता। लाओत्सु चले ही आते हैं। मैं निरंतर लाओत्सु पर बोल रहा हूं। जब मैं पतंजलि पर बोल रहा होता हूं जब मैं बुद्ध पर या जीसस पर बोल रहा होता हूं तो यदि तुम मुझे समझ सको तो लाओत्सु निरंतर एक अंतर-धारा बने रहते हैं। लेकिन यदि तुम मुझे नहीं समझते, तो यह प्रश्न खड़ा होता है, 'आप निरंतर लाओत्सु पर ही क्यों नहीं बोलते रहते?' लाओत्सु मेरे लिए कोई विषय नहीं हैं, पतंजलि हैं। मैं जब पतंजलि पर बोलता हूं तो मैं पतंजलि पर बोलता हूं। मैं जब लाओत्सु पर बोलता हूं तो मैं लाओत्सु पर नहीं बोलता हूं; मैं जो बोलता हूं वह लाओत्सु ही है। और भेद बड़ा है, बहुत बड़ा है।
अंतिम प्रश्न :
क्या वर्नर एरहाई बुद्धत्व के निकट हैं?
पछा है माधुरी ने। एरहार्ड उतना ही निकट है जितना कि माधुरी। हर कोई उतना ही निकट है
जितना कि एरहार्ड। असल में बुद्धत्व एक छलांग है, कोई क्रमिक घटना नहीं है-एक ही कदम में यात्रा पूरी हो जाती है। यह ऐसे ही है जैसे तुम आंखें बंद किए बैठे हो, और तुम आंखें खोलते हो और सूर्य सामने है, सारा संसार अपूरित है प्रकाश से। कोई आंखें बंद किए बैठा है : तब भी संसार आलोकित है प्रकाश से और सूर्य मौजूद है, केवल वही आंखें बंद किए बैठा है। और यदि इससे वह आनंदित हो रहा है तो इसमें कुछ गलत नहीं है, एकदम ठीक है; लेकिन यदि वह दुखी है तो मैं कहता हूं कि तुम आंखें क्यों नहीं खोल लेते?
अज्ञान और ज्ञान के बीच भेद बस आंखें खोलने का ही है। भेद कुछ ज्यादा नहीं है, यदि तुम आंखें खोलने के लिए तैयार हो। तुम आंखें खोलने के लिए तैयार नहीं हो, तो भेद बहुत ज्यादा है।
एरहार्ड उतना ही निकट है जितना कि कोई और, लेकिन लगता है कि बुद्धि एक रुकावट है उसके लिए। ठीक ऐसे ही जैसे कि बुद्धि तुम्हारे लिए, करीब-करीब तुम सभी के लिए एक रुकावट है।