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कर्मस्तव
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पूर्वीका भी उदय नहीं होता, किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वका उदय होता है, अतः उदय योग्य प्रकृतियाँ सौ और उदयके अयोग्य बाईस हैं । अनुदयप्रकृतियाँ अड़तालीस हैं । यहाँ पर एक सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिको उदयसे व्युच्छित्ति होती है । अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में उदयके योग्य प्रकृतियाँ एक सौ चार हैं; क्योंकि यहाँ पर सभी अर्थात् चारों आनुपूर्वियोंका और सम्यक्त्वप्रकृतिका उदय होता है। उदयके अयोग्य प्रकृतियाँ अट्ठारह और अनुदय-प्रकृतियाँ चवालीस हैं । यहाँ पर अप्रत्याख्यानावरण-चतुष्क आदि सत्तरह प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं । देशविरत में सत्तासी प्रकृतियोंका उदय होता है, उदयके अयोग्य पैंतीस हैं, अनुदयप्रकृतियाँ इकसठ हैं और प्रत्याख्यानावरणचतुष्क आदि आठ प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं । प्रमत्तविरतमें आहारकद्विकका उदय होता है, अतः उनके साथ उदयके योग्य प्रकृतियाँ इक्यासी हैं, उदयके अयोग्य इकतालीस हैं और अनुदय सड़सठका है । यहाँ पर स्त्यानगृद्धि आदि पाँच प्रकृतियोंकी उदयसे व्युच्छित्ति होती है । अप्रमत्तविरत में उदयके योग्य छिहत्तर, उदयके अयोग्य छयालीस और अनुदय प्रकृतियाँ बहत्तर हैं । यहाँ पर सम्यक्त्वप्रकृति आदि चारकी उदय व्युच्छित्ति होती है । अपूर्वकरणमें उदय योग्य बहत्तर, उदयके अयोग्य पचास और अनुदय-प्रकृतियाँ छिहत्तर हैं । यहाँ पर हास्यादि छह प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति होती है । अनिवृत्तिकरण में उदय योग्य छयासठ, उदयके अयोग्य छप्पन और अनुदय प्रकृतियाँ वियासी हैं । यहाँ पर वेद-त्रिकादि छह प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं । सूक्ष्मसाम्पराय में उदय योग्य साठ, उदयके अयोग्य बासठ और अनुदय - प्रकृतियाँ अठासी हैं । यहाँ पर एकमात्र संज्वलन लोभकी उदय व्युच्छित्ति होती है । उपशान्तमोह में उदय योग्य उनसठ, उदयके अयोग्य तिरेसठ और अनुदयप्रकृतियाँ नवासी हैं । यहाँ पर वज्रनाराच और नाराचसंहनन इन दो प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति होती है । क्षीणमोहके द्विचरम समय तक सत्तावनका उदद्य रहता है अतः उदयके अयोग्य पैंसठ और अनुदय प्रकृतियाँ इक्यानवे जानना चाहिए । यहाँ पर द्विचरम समय में निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति होती है । इसी गुणस्थानके चरम समय में उदय योग्य पचपन, उदयके अयोग्य सड़सठ और अनुदय-प्रकृतियाँ तेरानवे हैं । चरम समय में ज्ञानावरण-पंचकादि चौदह प्रकृतियोंकी उदयसे व्युच्छित्ति होती है । सयोगिकेवली गुणस्थान में तीर्थङ्कर-प्रकृतिका उदय होता है, अतः उदयके योग्य वियालीस, उदयके अयोग्य अस्सी और अनुदयप्रकृतियाँ एक सौ छह हैं । यहाँ पर संस्थान, संहनन आदि तीस प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं। अयोगिकेवल गुणस्थान में अवशिष्ट रही बारह प्रकृतियोंका उदय होता है, उदयके अयोग्य एक सौ दश और अनुदय-प्रकृतियाँ एक सौ छत्तीस हैं । यहाँ पर मनुष्यगति आदि जिन बारह प्रकृतियोंका उदय होता है, अन्तिम समय में उन सबकी उदयसे व्युच्छित्ति हो जाती है। ( देखो, संदृष्टि - संख्या ११ ) मिथ्यात्वगुणस्थान में उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ
[मूलगा० १६] 'मिच्छत्तं आयावं सुहुममपजत्तया य तह चेव ।
साहारणं च पंच य मिच्छम्हि य उदयवुच्छेओ ||३०||
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मिथ्यात्व, आताप, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण; ये पाँच प्रकृतियाँ मिथ्यात्वगुणस्थान में उदयसे व्युच्छिन्न होती है ॥३०॥
मिथ्यात्व में उदय व्युच्छिन्न ५ ।
1. सं० पञ्चसं० ३, ४१ ।
१. कर्मस्त० गा० २५ ।
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