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पञ्चसंग्रह
अब सासादन गुणस्थानमें योगसम्बन्धी भंगोका निरूपण करते हैं
आसादे च उभंगा वारसजोगाहया य अडयाला । मिस्सम्हि य चउभंगा दसजोगहया य चत्तालं ||३३१॥
४।४८!४|४०|
यिकमिश्रं विना द्वादशभिर्योगे १२ र्हता अष्टचत्वारिंशदुदयस्थान विकल्पाः ४८ सासादने भवन्ति । मिश्र
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सासादनस्थानानि नवकादीनि चत्वारि मा इति चतुर्भङ्गाः ४ । सासादनो नरकं न यातीति वैक्रि
चतुर्भङ्गाः दशयोगगुणिताश्चत्वारिंशदुदयस्थानविकल्पाः ४० भवन्ति ॥३३१॥
सासादन गुणस्थान में नौ आदिक चार उदयस्थान होते हैं । उन्हें पर्याप्तकालमें संभव बारह योगोंसे गुणा करने पर अड़तालीस भङ्ग हो जाते हैं । मिश्र गुणस्थानमें सम्भव चार उदयस्थानोंको दश योगोंसे गुणा करने पर चालीस भङ्ग होते हैं ||३३१||
सासादनमें उदयस्थान ४ और भंग ४८ होते हैं । मिश्र में उदयस्थान ४ और भंग ४०
होते हैं।
अब अविरतसम्यग्दृष्टिके योगसम्बन्धी भंगका निरूपण करते हैंअट्ठेवोदयभंगा अविरयसम्मस्स होंति णायव्वा । मिस्सतिगं वजित्ता छह जोगहया असीदी य ||३३२ ||
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अविरतसम्यग्दृष्टेर्वेदकसम्यक्त्वापेक्षया मम । ७ ७ अष्टावुदयस्थानभङ्गाः मिश्रत्रिकं वर्जयित्वा
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दशभिर्योगे १०
गुणिताः शीत्युदयस्थानविकल्पा असंयतसम्यग्दष्टेः पर्याप्तस्य भवन्ति ८० ॥ ३३२ ॥ अविरतसम्यक्त्वीके उदयस्थानके विकल्प आठ ही होते हैं । उन्हें अपर्याप्तकालमें संभव तीन मिश्रयोगोंको छोड़कर शेष दश योगोंसे गुणा करने पर अस्सी भंग चौथे गुणस्थान में जानना चाहिए ||३३२॥
अविरतसम्यक्त्वमें उदयस्थान और योग भंग ८० होते हैं ।
अब देशविरत के योगसम्बन्धी भंग कहते हैं
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विरयाविरणियमा उदयवियप्पा दु होंति अट्ठेव । जोगेहिय गुणिया भंगा वावत्तरी होंति ॥ ३३३॥ उदया ८ णवजोगगुणा ७२ ।
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विरताविरते देशसंगते ७ ७ । ६।६ मिलित्वाऽष्टौ प्रकृत्युदयस्थानविकल्पा नियमेन भवन्ति ।
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नवभिर्योणिताद्वासप्त तिरुदयस्थानविकल्पा भवन्ति ॥ ३३३॥
+ उदये ।
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