Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 678
________________ सतग-संगहो सुक्कलेसिया केत्तियाओ पयडीओ बंधति ? चउरुत्तरसथं । तं कहं णज्जइ त्ति वुत्ते वुच्चदेवीसुत्तरसयबंधपयडीणं मज्झे णिरयाउगं तिरियाउगं णिरयदुगं तिरियदुगं इगि-विगलिंदियजाइ आदाउज्जोव थावर सुहुम अपज्जत्त साहारण एयाओ सोलह पयडीओ अवणीय चदुरुत्तरसयं होइ । तं च एयं १०४ । एत्थ तित्थयर-आहारदुगमवणीय सेसं एउत्तरसयं मिच्छादिट्ठी बंधति १०१। एत्थ मिच्छत्त णउंसयवेय हुडसंठीण असंपत्तसेवट्टसंघडण एयाओ चत्तारि पयडीओ अवणीय सेसाओ सत्ताणउदिपयडीओ सासणसम्मादिट्ठी बधंति ६७ । एत्थ सासणसम्मादिट्ठिवुच्छिण्णपयडोणं मज्झे तिरियाउग तिरियदुग उज्जोव मोत्तण सेसाओ एकवीस पयडीओ अवणिऊण मणुय-देवाउगे अवणीए चदुहत्तरि पयडीओ हुति । ताओ सम्मामिच्छादिट्ठी बधंति ७४ । एत्थ तित्थयर-मणुस-देवागं च पक्खित्ते सत्तहत्तरि पयडीओ हुति । ताओ असंजदसम्मादिट्ठी बधंति ७७ । संपहि संजदासंजदप्पहुदि जाव सजोगिकेवलि त्ति ताव ओघभंगो। एवं लेसामग्गणा समत्ता । भवियाणुवाएण भवसिद्धियाण ओघभंगो । अभवसिद्धियाण ओघमिच्छादिट्ठि-भंगो। एवं भवियमग्गणा समत्ता । सम्मत्ताणुवादेण खाइयसम्मत्तस्स असंजदसम्मादिट्टिप्पहुइ जाव सजोगिकेवलि त्ति ताव ओघभंगो। वेदयसम्मत्तस्स असंजदसम्मादिटिप्पहुइ जाव अप्पमत्तसंजओ त्ति ताव ओघभंगो । उवसमसम्मत्तस्स असंजदसम्मादिद्विगुणट्ठाणे केत्तियाओ पयडीओ बधति ? पंचहत्तरि पयडीओ । तं कहं णज्जइ ति वुत्ते वुच्चदे-अगंजदसम्मादिहि सत्तहत्तरि पयडीणं मज्मे मणय-देवाउगमवणीय पंचहत्तरि पयडीओ हुति ७५ । एत्थ विदियकसायचउक्कं मणुयदुग ओरा दिसंघडणं एयाओ अवणिय सेसाओ छावट्टि पयडीओ संजदासंजदा बधति ६६। तत्थ तदियकसायचउक्कं अवणीअ सेसाओ वासद्धि पयडीओ पमतसंजदा बधति ६२ । एत्थ सादिदरमरदि सोग अथिर असुभ अजसकित्ती अवणिऊण आहारदुगं पक्खित्ते अट्ठावण्ण पयडीओ हुति। ताओ अप्पमत्तसंजदा बधति ५८ | संपहि अपुव्वकरणप्पहुइ जाव उवसंतकसायवीयरायछ उमत्थु त्ति ताव ओघभंगो।। ___सासणसम्मत्तस्स सासणसम्मादिट्ठि-भंगो। सम्मामिच्छत्तस्स सम्मामिच्छादिट्ठि-भंगो । मिच्छत्तस्स मिच्छादिट्ठि-भंगो।। एवं सम्मत्तमग्गणा समत्ता। [ सण्णियाणुवादेग ] सण्णीणं ओघभंगो। असणीणं ओघमिच्छादिट्ठि-भंगो । असण्णिसासणसम्मादिट्ठीणं सासण-भंगो। णेव सण्णी णेवासण्णीण सजोगकेवलीण ओघभंगो। एवं सण्णिमम्गणा समत्ता। आहाराणुवादेण आहारीणमोघभंगो । अणाहारीण कम्मइयकायजोगभंगो । [एवं आहारमग्गणा समत्ता।] जह जिणवरेहिं कहियं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्म । आयरियकमेण पुणो जह गंगणइ-पवाहुव्व ॥१२॥ तह पउमणंदिमुणिणा रइयं भवियाण बोहणट्ठाए । ओघेणादेसेण य पयडीणं बंधसामित्तं ॥१३॥ १. अत्र ओघभंगो इत्यधिकः पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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