Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 724
________________ सत्तरि-संगहो तेणउदि वाणउदि इक्कणउदि णउदि अट्ठासीदि चउरासीदि वासीदि असीदि एगूणासीदि अत्तरि सत्तत्तरि दस णव एदाणि तेरस संतढाणाणि । इय कम्मपगडिट्ठाणाणि सुठ्ठ बंधुदयसंतकम्माणि । गइआइएसु अट्ठसु चउप्पयारेण णेयाणि ॥७३॥ इय एवं बंधुदयसंतकम्मपगडिहाणाणि [सुठु] सम्मं णाऊण गइआइएसु णिरयगइ एइंदिय वेइंदिय तेइंदिय चदुरिंदिय पंचिंदिय तिरिक्खगइ मणुसगइ देवगइ एदासु अट्ठमग्गणासु बंध-उदय-उदीरणा-संतसरूवचउठिवहेण जाणिज्जासु।। उदयस्सुदीरणस्स य सामित्तादो ण विजइ विसेसो। मोत्तण य इगिदालं सेसाणं सव्वपगडीणं ।।७४॥ 'उदयस्स उदीरणस्स य' पंचणाणावरण-चउदसणावरण-पंचअंतराइयाण मिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव खीणकसाय-अद्धाए समयाधियआवलियसेस त्ति उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव चरमसमओ त्ति । णिदापचलाणं मिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव खोणकसायसमयाधियावलिसेस त्ति उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव दुचरमसमओ ति। णिद्दाणिद्दा-पचला-पचला-थीणगिट्टीणं मिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव पमत्तसंजदो त्ति आहारसरीरं आवलियमेत्तकालेण उट्ठावेदि त्ति ताव उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव चरमसमयो त्ति । सादासादं मिच्छादिप्पिहुदि जाव पमत्तसंज उदीरणा । उदओ पुण अजोगिचरमसमओ त्ति ! मिच्छत्तस्स उदीरणा मिच्छादिचिरमसमयो त्ति सम्मत्ताभिमुहमिच्छादिठि-अणियट्रिकरणद्धाए समयाधिय-आवलियसेस त्ति उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव चरमसमओ त्ति । लोभसंजलणस्स मिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव सुहुमसंपराइगद्धाए समयाधियआवलियसेस त्ति ताव उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव चरमसमओ त्ति । इत्थिणqसग-पुरिसवेदाण मिच्छादिप्पिहुदि जाव अणियट्टिअद्धाए संखेजभागे गंतूण अप्पप्पणो बेदगद्धाए समयाधियआवलियसेस त्ति तोव उदीरणा । उदओ पुण तस्सेव अप्पप्पणो वेदगद्धाए चरमसमओ त्ति । सम्मत्तस्स असंजदसम्मादिट्ठिप्पहुदि जाव अप्पमत्तसंजदो त्ति ताव उदीरणा। णवरि अप्पप्पणो दसणखवण-अणियट्टिकरणद्धाइ समयाहिय आवलियसेस त्ति ताव उदीरणा । उदो पुण अप्पप्पणो चरमसमओ त्ति । णिरय-देवाउगाणं मिच्छादिप्हुिदि जाव असंजदसम्मादिट्ठि त्ति ताव उदीरणा। णवरि मरणावलियं मुत्तण । सस्मामिच्छादिट्ठी मरणावलियवसो णत्थि । उदओ पुण अप्पप्पणो चरमसमओ त्ति । तिरिक्खाउगस्स मिच्छादिहिप्पहुदि जाव संजदासंजदो त्ति ताव उदीरणा । णवरि पप्पणो मरणावलियं मुत्तण । सम्मामिच्छादिट्टी मरणावलियबसो णस्थि । उदओ पुण अपप्पणो चरमसमओ त्ति । मणुसाउगस्स मिच्छादिट्ठिप्पहुदि जाव पमत्तसंजदो त्ति ताव उदीरणा । णवरि अप्पप्पणो मरणावलिं मत्तूण । सम्मामिच्छादिदिम्मि मरणावलिववदेसो गस्थि । उदओ पुण अजोगिचरमसमओ त्ति । मणुसगइ-पंचिंदियजाइ-तस-बादर-पज्जत्त-सुभग-आदेज-जसकित्तीणं मिच्छादिटिप्पहुदि जाव सजोगिकेवली ताव उदीरणा । उदओ पुण अजोगिवरमसमओ त्ति। तित्थयरस्स सजोगिकेवालोम्म उदीरणा । उदओ पुण अजोगि त्ति । उच्चागोदस्स जहा मणसगदि तहा णेयवा। आदाव-सुहम-अपज्जत्त-साहारणाणं उदय-उदीरणा मिच्छादिहिम्मि । अणंताणुबंधि-एइंदिय-वेइंदिय-तेइंदिय-वदुरिंदिय-थावराणं मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीणं उदयो उदीरणा च । अपच्चक्खाणावरणचउक-णिरयगइ-देवगइवेउव्विय-वे उव्वियसरीरंगोवंग-दुभग-अगादिज-अजसकित्ति-णिमिणा-[णामाणं] मिच्छादिट्टिप्पहुदि जाव असंजइसम्मादिहि त्ति उदयो उदीरणा च । णिरयगइ-तिरिक्खगइ-मणुसगइ-देवगइपाओग्गाणुपुठवीणं मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु उदओ उदीरणा च । णवरि सासणे णिरयगइपाओग्गाणुपुत्वी णत्थि। पञ्चक्खाणावरणचउक्क-तिरिक्खगइ-उज्जोव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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