Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सतरि-संगहो
६५६
व्याहार - तेजा - कम्मइयसरीर-समचउर संठाण वेउग्विय आहारंगोवंग वण्णचत्तारि देवगइपाओग्गाणुपुवी अगुरुगलहुगादि चत्तारि पसत्थविहायगर तस बादर पज्जत्त पत्तेगसरीर थिर सुभ सुभग सुरसर आदिज्ज जसकित्ती णिमिण तित्थयर उच्चगोद पंच अंतराइय एदाओ ऊणसट्ठिपगडीओ अप्पमत्तसंजदो बंधई । सेसाओ इक्कसट्ठिपगडीओ ण बंधइ । अप्पमत्तो से ससंखेज्जदिभागे अट्ठावणं बंध, वासट्ठी ण बंधइ । कहं ? अंतोमुहुत्तं संखेज्जखंडाणि काऊण दसमे [संखेज्जदिमे] खंडे देवाउगं ण बंधइ, तेण अट्ठावण्णपगडीओ बंधइ; वासट्ठी ण बंधइ | 'अट्ठावण्णमपुव्वो छप्पण्णं चावि छव्वीसं' अट्ठावण्ण जाणि चेव अपमत्तोदएण खएण बंधइ, ताणि चैव अपुव्वकरणे सेससंखेज्जदिमे भागे गंतूण छप्पण्णं बंधइ, चउसट्ठी ण बंधइ । किं कारणं ? णिद्दा-पचलाओ संखेज्जदि मे भागे वोच्छिण्णाओ । सो चेव अपुव्त्रकरणे पुणरवि सेससंखेज्जदिमे भागे गंतूण पंचणाणावरण चउदसणावरण सादावेदणीयं चत्तारि संजलण पुरिसवेद हस्स रइ भय दुर्गांछा जसकित्ती उच्चागोदं पंचअंतराइय एढ़ाओ छव्वीस पगडीओ बंधइ, चरणउदिपगडीओ ण बंधइ । सो चेव अपुव्वकरणो चरमसमए वावीसपगडीओ बंधइ, अट्ठाणउदि पगडीओ ण बंधइ । कहं ? हस्स रइ भय दुर्गाला च चरमसमए वुच्छिण्णाओ । 'वावीसादो
गूणं बंधइ अट्ठारसं अणियट्टी । सत्तरस सुहुमसंपराइय सादममोहो सजोगि त्ति' अणियट्टिस्स अंतोमुहुत्तसंखेज्जभागे गंतूण इक्कवीस पगडीओ बंधइ, एगूणसदं ण बंधइ, पुरिसवेदस्स बंधो बुच्छिण्णो । सो चेव अणिट्टी सेससंखेज्जदिमे भागे गंतूण वीसपगडी बंधइ, एगपगडिसदं ण बंधइ; कोहसंजलणो य वुच्छिष्णो । सो चेव अणियट्टी पुणे सेससंखेज्जदिमे भागे गंतूण वीसपगडीओ बंधइ, एगुत्तरपगडिसदं ण बंधइ; माणसंजलणा य बंधवुच्छिण्णा । सो चेव अणियट्टी
रवि सेससंखेज्जदिमे भागे गंतूण अट्ठारस पगडीओ बंधइ, वेउत्तरपगडिसदं ण बंधइ, मायसंजलणो य बंधवुच्छिण्णो । सुहुमसंपराइओ पंचणाणावरण चत्तारि दंसणावरण सादावेदणीय जसकित्ती उच्चगोद पंच अंतराइय त्ति एदाओ सत्तरस पगडीओ सुहुमसंपराओ बंधइ, ति उत्तरपगडिसदं ण बंधइ, लोभसंजलणस्स बंधो वुच्छिण्णो । उवसंतकसाथ खीणकसाय सजोगिकेवलित्ति एक्कपगडी सादं बंधं, एगूणवीसुत्तरपगडिसदं ण बंधइ । अजोगिस्स बंधवच्छिण्णो । 'एसो दु बंधसामित्तो गदिआदिएसु वि तहेव ओघादो साहिज्जो जस्ल जहा पयडिसंभवो होदि । एसोघो गुणठाणे भणिदव्वो ।
तित्थयर देव-रियागं च तीसु वि गईसु बोधव्वा । अवसेसा पगडीओ हवंति सव्वासु वि गईसु ॥ ८१ ॥
एदाणि बंधसामित्तादो साधिदूण गदि आदि काढूण जाव अणाहारए ति णादव्वं । तित्थरगडिसतेण तीसु वि गदीसु अस्थि । णिरयगइ मणुसगइ देवगइ एदासु तीसु गदीसु तित्थयरअस्थि ति [वि] गदीसु देवाउसंतेण अस्थि । देव -[ णिरय ] - गइ तिरिक्खगइ मणुसगइ एदासु तिसु गदीसु णिरयागं-[सं-] तेण अस्थि ति विष्णेयं । सेसाओ पगडीओ चउसु वि गईसु अस्थि । सेसाओ ओघदिसेण गदिआदि कादूण णेयव्वं जाव अणाहारए ति ।
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पढमकसायचदुक्कं दंसणतिग सत्तआ दु उवसंता । अविरदसम्मत्तादी जाव णियट्टि त्ति बोधव्वा ॥८२॥
सत्त व य पण्णरस सोलस अट्ठारस वीस वावीसा | चवीसं पणुवीसं छव्वीसं बादरे जाण || ८३ ||
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