Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 815
________________ पश्चसंग्रह ६७ +आहारकद्विकके मिलानेसे ५ देशविरत ६ प्रमत्तविरत ७ अप्रमत्तविरत ८ अपूर्वकरण ६ ६ अनिवृत्तिकरण ६ १० सूक्ष्मसाम्पराय १ ११ उपशान्तमोह २ द्विचरमसमय १२ क्षीणमोह 199urry Morrow 6k WWMOMak १४ ५५ चरमसमय ur ur १३ सयोगिकेवली ३० १४ अयोगिकेवली १२ ४२+ १२ १०६ + तीर्थकर प्रकृतिके मिलानेसे १३६ ११० ww संदृष्टि संख्या १२ गुणस्थानों में उदीरणा-अनुदीरणादिकी संदृष्टि इस प्रकार है :गुणस्थान उदीरणा व्यु०उदीरणा अनुदीरणा सर्व प्रकृतियोंकी विशेष विवरण अपेक्षा अनुदीरणा १ मिथ्यात्व ५ ११७५+ ३१ + सम्यक्त्व प्र० सम्मग्मिथ्या तीर्थकर और आहारकद्विक विना २ सासादन १११ + ११३७ + नरकानुपूर्वीके विना ३ मिश्र १००+ २२ ४८ + तिर्यगानु० मनुष्या० देवानु० विना तथा मिश्र सहित ४ अविरत १७ १०४+ १८ ४४ चारोंआनुपूर्वी और सम्यक्त्वप्रकृतिके साथ ५ देशविरत ८ ८७ ३५ ६ प्रमत्तविरत ८ ८१+ ४१ ६७ + आहारक द्विक मिलाकर ७ अप्रमत्तविरत ४ ७३ ४६ ८ अपूर्वकरण ६ ६१ ५३ ६ अनिवृत्तिकरण ६ १० सूक्ष्मसाम्पराय १ ११ उपशान्तमोह २ द्विचरम स० २ ५४ ६८ १२ क्षीणमोह ५२ चरम स० १० १३ सयोगिकेवली ३६ ३६+ ८३ १०६ + तीर्थकर प्रकृति मिलाकर १४ अयोगिकेवली ० ० १२२ 9 Www mockM m संदृष्टि संख्या १३ गुणस्थानों सत्त्व-असत्त्वादिकी संदृष्टि इस प्रकार है :गुणस्थान सत्त्वत्युच्छित्ति सत्त्व असत्त्व विशेष विवरण १ मिथ्यात्व १४५+ ३ + देवायु, नरकायु और तिरगायुके विना २ सासादन ० १४२+ ६ +तीर्थकर और आहारकद्विकके विना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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