Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 871
________________ ८०४ पञ्चसंग्रह प० पंक्ति अशुद्ध ७५४६ अबन्ध ३७ ३४ ३१ ४१ ४५ ४९ अबन्ध ३ १०३७ ३४ ४४ ४८ ५२ ७५४ ७ बन्धन्यु० ४ बन्धव्यु. ७ ७५४ २८ बं० व्यु०९४६०३६ ५ १६ १० बं० व्यु० ९.४६०३६ ५ १६० यह शुद्धिपत्र भी श्री० व. पं० रतनचन्द्रजी मुख्तारने ही तैयार करके भेजा है, इसके लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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