Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 821
________________ ७५४ पञ्चसंग्रह संदृष्टि सं० २६ तेजोलेश्यावाले जीवोंकी बन्ध-रचना • बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ १११ सासा० मि० अवि० देश० १०१ ७४ ७७ ६७ प्रम० मि० १०५ अप्र० वन्ध अबन्ध बंधव्यु० ४५ ४६ ४ २५० १० ४ संदृष्टि सं०३० गुण मि० बन्ध १०५ अबन्ध ३ बन्ध व्यु० ४ पद्मलेश्यावाले जीवोंकी बन्ध-रचना • बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ १०८ सासा. मि० अवि० देश० प्रमत्त १०१ ७४ ७७ ६७ ६३ ७ ३४ ३१ ४१ ४५ २५ ० १० ४ ६ अप्र० ५६ ४६ १ संदृष्टि सं०३१ शुक्ललेश्यावाले जीवोंकी बन्ध-रचना __ बन्ध-योग्य पूर्व प्रकृतियाँ १०४ गु० मि० सा० मि० अवि० देश० प्र० अप्र० अपू० अनि० सूक्ष्म उप० क्षी० सयो बन्ध १०१ ६७ ७४ ७७ ६७ ६३ ५६ ५८ २२ १७ १ १ १ अब० ३ ७ ३० २७ ३७ ४१ ४५ ४६ ८२ ८७ १०३ १०३ १०३ बं.व्यु. ४ २१ ८ १० ४ ६ १ ३६ ५ १६ ० ० १ संदृष्टि सं० ३२ औपशमिकसम्यक्त्वी जीवोंकी बन्ध-रचना - ___ बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ ७७ गुण० अवि० देश० प्रमत्त अप्र० अपू० अनि० सू० बन्धक ७५. ६६ - ६२५८ ५८ २२ १७ अव० २ ११ १५ १६ १६ ५५ ६० वं० व्यु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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