Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 677
________________ पंचसंगहो ___णाणाणुवादेण मइअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणो केत्तियाओ पयडीओ बंधति ? सत्तरसुत्तरसयं । तं कहं णज्जइ त्ति वुत्ते धुञ्चदे-वीसुत्तरसयबंधपयडीणं मज्झे तित्थयरं आहारदुगं अवणिऊण सत्तरससयं च होइ । तं च एयं ११७ । भइ-अण्णाणी सद-अण्णाणी विभंगणा मिच्छादिट्ठी एत्तियाओ चेव बंधति १२७ । एत्थ मिच्छादिहिच्छिण्णपयडीओ सोलस अवणीए सेस-एउत्तरसयं सासणसम्मादिट्ठी बंधति १०१ । मइ-सुय-ओधिणाणीणं असंजदसम्मादिटिप्पहुदि जाव खीणकसाओ त्ति ताव ओघभंगो। मणपज्जवणाणीणं पमत्त-संजदप्पहुइ जाव खीणकसाओ त्ति ताव ओघभंगो । केवलणाणीणं पि सजोगीण ओघभंगो। [ एवं ] णाणमग्गणा समत्त।। संजमाणुवादेण सामाइय-छेदोवठ्ठावणसुद्धिसंजमाण पमत्तसंजदप्पहुइ जाव अणियट्टि ओघभंगो। परिहारसुद्धि-संजदाणं पि पमत्तापमत्ताण ओघभंगो। सुहुमसंपराइयसुद्धिसंजदाणं पि सुहुम-ओघभंगो। जहाखादसंजदाणं पि उवसंतखीण सजोगी ओघभंगो। संजमासंजमस्स ओघभंगो। असंजमस्स वि मिच्छादिट्टिप्पहुदि जाव असंजदसम्मादिट्ठी ओघभंगो।। एवं संजममग्गणा समत्ता । दसणाणुवादेण चक्खु-अचक्खुदंसणस्स मिच्छादिटिप्पहुदि जाव खीणकसायवीयरायछदमस्थि त्ति ताव ओघभंगो। ओधिदसणस्स असंजदसम्मादिटिप्पहुदि जाव खीणकसाय-वीयरायछदुमत्थेत्ति ताव ओघभंगो : केवलदसणस्स सजोगिओघभंगो। [ एवं ] दंसणमग्गणा समत्ता । लेसाणुवादेण किण्ह-णील-काउलेसा केत्तियाओ पयडीओ बंधति ? अट्ठारहुत्तरसयं । तं कहं णज्जइ नि वुत्ते वुच्चदे-वीसुत्तरसयबंधगपयडीणं मज्झे आहारदुर्ग अवणीय अट्ठारहुत्तरसयं च होइ। तं च एयं ११८। एत्थ तित्थयर णाममवणीय सेससत्तरहुत्तरसया मिच्छादिट्टी बंधंति ११७ । एत्थ मिच्छादिहिवुच्छिण्णपयडीओ सोलस अवणीय सेसं एउत्तरसयं सासणसम्मादिट्ठी बंधति १०१। एत्थ सासणसम्मादिडिवुच्छिण्णपषडीओ देव-मणुसाउगं च अवणीय सेसाओ चउहत्तरि पयडीओ सम्मामिच्छादिट्ठी बंधंति ७४ । एत्थ तित्थयरणाम मणुसाउगं च पक्खित्ते सत्तहत्तरि पयडीओ हुंति । ताओ असंजदसम्मादिट्ठी वधंति ७७। तेउलेसिया केत्तियाओ पयडीओ बंधति ? एयार हुत्तरसयं । तं कहं णज्जइ त्ति वुत्ते वुच्चदेवीसुत्तरसयबंधपयडीणं णिरयाउय णिरयदुअं वियलिंदियजाइतिय सुहुम साहारण अपज्जत्त एयाओ णव पयडीओ अवणीय एयारहुत्तरसयं होइ। तं च एयं १११ । एत्थेव तित्थयराहारदुगमवणीय सेस-अट्ठुत्तरसय मिच्छादिट्ठी बंधति १०८। एत्थ मिच्छत्त णउंसयवेयपयडीओ हुंडसंठाणं असंपत्तसेवसंघडण एइंदियजाइ आदव थावर एयाओ सत्त पयडीओ अवणीअ सेस-एउत्तरसयं सासणसम्मादिट्ठी बंधति १०१। संपहि सम्मामिच्छादिटिप्पहुइ जाव अपमत्तसंजओ त्ति ओघभंगो। पम्मलेसिया केत्तियाओ पगडीओ बंधति ? अठुत्तरसयं । तं यहं गज्जइ त्ति वुत्ते वुच्चदे-वीसुत्तरसयबंधपयडीणं मज्झे णिरयाउग-[णिरयाउग-]दुगं एगिदिय विगलिंदियजाइ आदव थावर सुहुम अपज्जत साधारण एयाओ वारस पयडीओ अवणीय सेसं अठुत्तरसयं होइ । तं च एयं १०८ । एत्थ तित्थयर-आहाग्दुगमवणिदे सेसपंचुत्तरसयं मिच्छादिट्ठी बंधंति १०५ । एत्थ मिच्छत्त णउंसयवेद हुंडसंठाण असंपत्तसेवट्ट-संघडणमवणिअ सेसएगुत्तरसयं सासणसम्मादिट्टी बंधंति १०१। संपहि सम्मामिच्छादिट्टिप्पहुइ जाव अप्पमत्तसंजओ त्ति ताव ओघभंगो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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