Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 675
________________ ६०८ पंचसंगहो सम्मामिच्छादिट्ठी बंधति ६६ । एत्थेव तित्थयर, देवाउगं च पक्खित्ते एयहत्तरि पगडीओ असंजदसम्मादिट्ठी बंधति ७१ । एत्थेव विदियकसायचदुकं अवणिय सेसाओ सत्तसहि पगडीओ संजदासंजदा बंधति ६७ । एत्तो पमत्तसंजदपहुदि जाव सजोगिकेवलि त्ति ताव ओघभंगो । जहा सामण्णमणुस्साणं भणियं, तहा चेव मणुसपज्जत्ताणं मणुसिणीणं च होइ । मणुय-अप्पज्जत्ताणं तिरिय-अप्पज्जत्तभंगो। एवं मणुयगई समत्ता। देवगईए सामण्णदेवा केत्तियाओ पयडीओ बंधति ? चदुरुत्तरसयं । तं कहं जइ त्ति दे-वीसुत्तरसयबंधपयडीणं मज्झे णिरयाउग देवाउग वेउव्वियछक्क वेइंदिय ती इंदिय चदुरिंदियजाइ आहारदुग सुहम अपज्जत्त साहारण एयाओ सोलस पयडीओ अवणीए चदुरुत्तरसयं होइ। तं च एयं १०४ । एत्थेव तित्थयरणाममवणीए सेसा तेउत्तरसय मिच्छादिट्ठी बंधति १०३ । एत्थ मिच्छत्त णउंसयवेय हुडसंठाण असंपत्तसेवट्टसंघडण एइंदियजादि थावर आदाय एयाओ सत्त पयडीओ अवणीय सेसाओ छण्णवइ पयडीओ सासणसम्मादिट्ठी बंधंति ६६। एत्थ सासणसम्मादिहिवुच्छिण्णपयडीओ मणुसाउयं च अवणीय सेसाओ सत्तरि पयडीओ सम्मामिच्छादिट्ठी बंधंति ७०। एत्थ मणुसाउगं पक्खित्ते एयहत्तरिपगडीओ असंजदसम्मादिट्टी बंधति ७१। ____सोहम्मीसाणकप्पेसु सामण्णदेवभंगो । सणक्कुमारप्पहुदि जाव सहस्सारकप्पवासिया देवा कित्तियाओ पयडीओ बंधति ? एउत्तरसयं । तं कहं णजइ त्ति वुत्ते वुच्चदे। तं जहा-सामण्णदेवपयडीणं मज्झे एइंदियजाइ थावर आदाव एयाओ तिण्णि पयडीओ अवणीय एउत्तरसयं च होइ। तं च एयं १०१ । एत्थेव तित्थयरणाम अवणिए सेसं सयं च मिच्छादिट्ठी बंधइ त्ति १०० । एत्थ मिच्छत्त णवंसयवेद हुडसंठाणमसंपत्तसेवट्टसंघडणमवणीए सेसाओ छण्णवइ पयडीओ सासणसम्मादिट्ठी बंधंति६६ । एत्थ सासणसम्मादिट्टि-वोच्छिण्णपयडीओ पणुवीस मणुआउगं च अवणीय सेसाओ सत्तरि पयडीओ सम्मामिच्छादिट्ठी बंधति ७० । एत्थ तित्थयर मणुसाउगं च पक्खित्ते वाहत्तरि पयडीओ हुति, ताओ असंजदसम्मादिट्ठी बंधति ७२ । आणदादि जाव उवरिमगेवज्जविमाणवासियदेवा केत्तियाओ पगडीओ बंधति ? सत्ताण. उइ। तं कहं णज्जइ त्ति वुत्ते वुच्चदे । तं जहा-सामण्णदेवपगडीणं मज्झे तिरियाउगं च एइंदियजादि । तिरियदुग आदाउज्जोव थावर एयाओ सत्त पयडीओ अवणीए सत्ताणउदि पयडीओ हुति ६७ । एत्थेव तित्थयरणाममवणिए सेसाओ छण्ण उइ पगडीओ मिच्छादिट्ठी बंधंति ६६ । एत्थ मिच्छत्त णउंसयवेद हुडसंठाणं असंपत्तसेवट्टसंघडणं एयाओ चत्तारि पगडीओ अवणीय सेसा वाण उदिपयडीओ सासणसम्मादिट्ठी बंधति ६२ । एत्थ सासणसम्मादिट्ठिवुच्छिण्णपयडीणं मज्झे तिरिया [उगं] तिरियदुर्ग [च उक्खेव [पक्खेवे] एयाओ चत्तारि पयडीओ सासणवुच्छिण्ण इक्वीस पयडीओ अवणीए सेसाओ सत्तरि पयडीओ सम्मामिच्छादिट्ठी बंधति ७० । एत्थेव तित्थयर मणुसाउग पक्खित्ते बाहत्तरि पयडीओ हुति । ताओ असंजदसम्मादिट्ठी बंधंति ७२ । एयाओ असंजदसम्मादिट्टीओ अणुदिस-अणुत्तर जाव सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासिदेवा बंधति ७२ । एवं देवगइसग्गणा समत्ता । इंदियमगणाणुवादेण जाव इगि-विगलिंदियाण तिरिय-अपज्जत्ताण भंगो। तस्स पमाणं १०६ । एइंदिय वेइंदिय तेइंदिय [चउरिदिय] मिच्छादिहिणो बंधति १०६ । एत्थ मिच्छादिट्ठीवुच्छिण्णपयडीण मज्झे णिरयाउग णिरयदुर्ग सेसा दूणादि उस्सास (णवुत्तरसय) पयडीओ सासण-सम्मादिट्ठी बंधति ६६ । पंचिंदियाणं वेण [ओघमिव]। एवं इंदियमग्गणा समत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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