Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
६४६
पंचसंगहो
मिंदियपज्जत्तम्मि तेवीस पणुवीस छव्वीस एगूणतीस एदाणि पंच संत[बंध ]ट्ठाणाणि ईगिवीस चउवीस पणुवीस छव्वीस एदाणि चत्तारि उदयट्ठाणाणि, वाणउदि अट्ठासीदि चउरासीदि वासीदि एदाणि पंच संतवाणाणि । बादरेइंदियपज्जत्तजीवसमासम्मि तेवीस पणुवीस छव्वीस
एदाणि पंच बंधटठाणाणि, इगिवीस चउवीस पणवीस छठवीस सत्तावीस एदाणि पंच उदयट्ठाणाणि, वाणउदि णउदि अट्ठासीदि चउरासीदि वासीदि एदाणि पंच संतट्ठाणाणि । बीइंदियपज्जत्त तीइंदियपज्जत्त चदुरिंदियपज्जत्त एदेसु तीसु जीवसमासेसु तेवीस पणुवीस छब्बीस एगूणतीस तीस एदाणि पंच बंधाणाणि, इगिवीस छव्वीस अट्ठावीस एगणतीस एकतीस एदाणि छ उदयट्ठाणाणि, वाणउदि णउदि अट्ठासीदि चउरासीदि वासीदि एदाणि पंच संतट्ठाणाणि । असण्णिपंचिदियपज्जत्तजीवसमासम्मि तेवीसं पणुवीसं कव्वीसं अट्ठावीसं एगूणतीसं तीसं एदाणि छ बंधट्ठाणाणि, इक्कवीस छठवीस अट्ठावीस एगूणतीस तीस इक्कतीस एदाणि छ उदयट्ठाणाणि, वाणउदि णउदि अट्रासीदि चउरासीदि वासीदि एदाणि पंच संताणाणि । सण्णिपंचिदियपज्जत्तजीवसमासम्मि तेवीसं पणुवीसं छव्वीसं अट्ठावीसं एगृणतीसं तीसं इकतीसं एक एदाणि अट्ठ बंधट्ठाणाणि, एकवीस पणुवीस छव्वीस सत्तावीस अट्ठावीस एगूणतीस तीस इक्कतीस एदाणि अट्ठ उदयट्ठाणाणि, तेण उदि वाणउदि इक्काणउदि णउदि अट्ठासीदि चउरासीदि वासीदि असीदि एगूणासीदि अट्ठत्तरि सत्तत्तरि एदाणि इक्कारस संतवाणाणि । उवरदबंधे उदयट्ठाणं तीसं इक्कं, तेणउदि वाणउदि इक्काणउदि णउदि असीदि एगूणासीदि अट्ठत्तरि सत्तत्तरि एदाणि अट्ठ संतढाणाणि । णेव सण्णी-णेवासण्णीस तीस इकतीस णव अट्ट एदाणि चत्तारि उदयट्ठाणाणि, असीदि एगूणासीदि अट्ठत्तरि सत्तत्तरि दस णव एदाणि छ संताणाणि ।
णाणंतराय तिविहमवि दससु दो हुंति दोसु ठाणेसु । मिच्छा सासण विदिए णव चदु पण णवय संतकम्मंसा ॥४६॥ मिस्सादि-णियट्टीदो सो छ ]चउ पण णव य संतकम्मंसा। चदुबंधं तिय चदु पण णव अंस दुवे छलंसा य ॥५०॥ उवसंते खीणम्मि य चदु पण णव छच्च संत चउजुगलं । . वेदणियाउगगोदे विभज मोहं परं चुच्छं ॥५१॥ मिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव सुहुमसंपराइओ त्ति एदेसु दससु गुणट्ठाणेसु णाणावरणंतराइयाणं पंच बंधं पंच उदयं पंचं संतं । उवसंत-खीणकसाय एदेसु दोसु गुणट्ठाणेसु पंच उदयं पंच संतं । दंसणावरणम्मि मिच्छादिठ्ठि-सासणसम्मादिछि एदेसु दोसु गुणट्ठाणेसु णव बंध, चत्तारि वा पंच वा उदयंसा, णव संता । 'मिस्सादि अणियट्टीदो' सम्मामिच्छादिठ्ठिप्पहुदि जाव अपुव्वकरणपढम-सत्तमभागो त्ति एदेसु छसु गुणहाणेसु छ बंध, चत्तारि वा पंच वा उदयं, णव संतं । अपुवकरणविदियसत्तमभागप्पहुदि जाव सुहुमसंपराइओ त्ति एदेसु तीसु गुणट्ठाणेसु चत्तारि वा पंच वा उदयं, णव सतं । अणियदिखवगद्धाए संखेज भागं गंतूण णिहाणिहा पचलापचला-थीणगिद्धी एदासु तीसु पगडीसु खोणासु तओ पहुदि जाव सुहुमसंपराइयखवगोत्ति एदेसु दोसु गुणट्ठाणेसु छ संतं, बंधोदयपगडीओ पुव्वुत्ताअं चेव । उवरदबंधे उवसंतकसायम्मि चत्तारि वा पंच वा उदयं, णव संतं । खीणकसायम्मि चत्तारि वा पंच वा उदयं, छ संतं। तस्सेव चरमसमए चत्तारि उदयं, चत्तारि संतं । 'देदणिआउगगोदे विभज्ज मोहं परं वुच्छं'।
वादालतेरसुत्तरसदं च पणुवीसयं वियाणाहि । वेदणियाउगगोदे मिच्छादि-अजोगिणं भंगा ॥५२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872