Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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६४४
पंचसंगहो वावटि वेदणीए आउस्स हवंति तिरधियसयं च ।
गोदस्स य सगदालं जीवसमासेसु बोधव्वा ॥४॥ 'वेदणीयाउगे गोदे वावट्टि' वेदणीए सादं बंधं सादं उदयं सादासादं संतं; सादं बंधं असादं उदयं सादासादं संतं; असादं बंध सादं उदयं सादासादं संतं; असादं बंध असादं उदयं असादं संतं एकरस जीवसमासस्स चत्तारि वियप्पा लोभमुत्ति [लभामो तो] चउदसेसु जीवसमासेसु केत्तिया हुंति त्ति चउहि चोदस जीवसमासा गुणिया छप्पण्णा हुँति ५६ । णेव सण्णिणेवासण्णिम्मि सादं वंधं सादं उदयं सादासादं संतं; सादं बंधं असादं उदयं सादासादं संतं; उवरदबंधे सादं उदयं सादासादं संतं, असादं उदयं सादासादं संतं; अजोगि - चरमे सादं उदयं सादं संतं; असादं उदयं असादं संतं एदे छ भंगा पुग्विल्ल छप्पण्णभंगा मेलाविय वावडिं भंगा हुति वेदणीयस्स ६२ । .
___ 'आउगस्स हवंति तिरधियसयं च' सुहुमिदियापज्जत्तजीवसमासम्मि तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खाउगं संतं, तिरिक्खाउगं बंधं तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-तिरिक्खाउगं संतं; उवरदबंधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-तिरिक्खाउगं संतं; मणुसाउगं बंधं तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खमणुसाउगं संतं; उवरबंधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-मणुसाउगं संतं । एदे पंच भगा। एवं असण्णिपंचिदियपज्जत्त-सण्णिपंचिंदियपज्जत्तापज्जत्तजीवसमासाणं सव्वे भगा पणवण्णा ५५ । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयम्मि तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खाउगं संतं; णिरयाउगं बंधं तिरियाउगं उदयं तिरिक्ख-णिरयाउगं संतं । उवरदबंधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-णिरयाउगं संतं; तिरिक्खाउगं बधं तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-तिरिक्खाउगं संतं; उवरदबंधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-तिरिक्खाउगं संतं; मणुसाउगं बधं तिरिक्खाउगमुदयं तिरिक्ख-मणुसाउगं संतं; उवरदबंधे तिरिक्खागं उदयं तिरिक्ख-मणुसाउगं संतं; देवागं बंधं तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-देवाउगं संतं; उवरदबंधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-देवागं संत एवं णव भगाई । सणिपंचिंदियपन्जत्तजीवसमासम्मिणिरयाउगं उदयं णिरयाउगं संतं; तिरिक्खाउगं बंधं णिरयाउगं उदयं णिरयतिरिक्खाउगं संतं; उवरदबधे णिरयाउगं उदयं णिरय-तिरिक्खाउगं संतं; मणुसाउगं बंध णिरयाउगं उदयं णिरय-मणुसाउगं संतं; उवरदबधे णिरयाउगं उदयं णिरय-मणुसाउगं संतं एवं भगा पंच ५ । तिरिक्खस्स तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खाउगं संतं; णिरयाउगं बधतिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-णिरयाउगं संतं; उवरदबधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-णिरयाउगं संतं; तिरिक्खाउगं बध तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-तिरिक्खाउगं संतं; उवरदबधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खाउगं संतंः मणुसाउगं बध तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-मणुसाउगं संतं; उवरदबधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-मणुसाउगं संतं; देवाउगं बधं तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-देवाउगं संतं; उवरदबधे तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्ख-देवाउगं संतं । एवं णव भगा है। मणुसस्स मणुसाउगं उदयं मणुसाउगं संतं; जिरयाउगं बधं मणसाउगं उदयं, मणुस-णिरयाउगं संतं; उवरदबंधे मणुसाउगं उदयं मणुस-णिरयाउगं संतं; तिरिक्खाउगं बंध मणुसाउग उदयं मणुसतिरियाउगं संत; उवरदबधे मणुसाउगं उदयं मणुस-तिरिक्खाउगं संतं; मणुसाउगं बधे मणुसाउगं उदयं मणुस-मणुसाउगं संतं; उवरदवघे मणुसाउगं उदयं मणुस-गणुसाउगं संतं; देवाउगं बध मणुसाउगं उदयं मणुस-देवाउगं संतं, उवरदबंधे मणुसाउगं उदयं मणुस-देवाउगं संतं । एवं णव भगा ६ । देवस्स देवाउगं उदयं देवाउगं संतं; तिरिक्खाउगं बंध देवाउगं उदयं देव-तिरिक्खाउगं संतं; उवरदबंधे देवाउगं उदयं देवतिरिक्खाउगं संतं; मणुसाउगं बंध देवाउगं उदयं देव मणुसाउगं संतं; उवरदबंधे देवाउगं उदयं देव-मणुसाउगं संतं । एवं पंच भंगा ५।
सणिपंचिंदियअपज्जत्तजीवसमासम्मि तिरिक्खाउगं उदयं तिरिक्खाउगं संतं; तिरिवखाउगं
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