Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 709
________________ पंचसंगहो देवगइ - उदयसंजुत्ताणि पंच ठाणाणि । तं जहा - देवगइ पंचिदियजाइ-तेज-कम्मइयसरीरवण्ण-गंध-रस-फास-देवगइपाओग्गाणुपुव्वी- अगुरुगलहुग- तस बादर पज्जत्त - थिराथि र सुभासुभसुभग- आदिज्ज-जस कित्तिणिमिणणामाओ पगडीओ घेत्तृण एक्कवीस उदयद्वाणं । तं विग्गहगईए वट्टमाणस्स जहण्णेणेगसमयं उक्कस्सेण वे समयं । एदस्स एकको चैव भंगो १ । एदाओ व आणुव्ववज्जाओ वे उव्वियसरीर-समचउर संठाण वे उव्वियसरी रंगोवंग उवघाद पत्तेयसरीरसहियाओ घेत्तूण पणवीस उदयद्वाणं । तं सरीरगहियपढमसमय पहुदि जाव सरीरपज्जत्तगओ होइ, ताव होई जहणणुक्कस्सेणंतोमुहुत्तं । एदस्स भंगो इक्को चेव १ । एदाओ चेव पगडीओ परघाद-पसत्थविहायगइसहियाओ घेत्तृण सत्तावीस - उदयद्वाणं । तं सरीर पज्जत्तगदपढम-समयपहुदि जाव आणापाणपज्जत्तगओ ण होई, ताव होइ जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तकालं । एदस्स वि एक्को चेव भंगो १ । एदाओ चेव पगडीओ उस्साससहियाओ घेत्तृण अट्ठावीस उदयट्ठाणं । तं आणापाणपज्जत्तगदपढमसमय पहुदि जाव भासापज्जत्तगओ ण होइ । ताव होइ । जहण्णुक्करसेणंतोमुहुत्तकालं । एदस्स इक्को चेव भंगो १ । एदाओ चेव पगडोओ सुस्सरसहियाओ घेत्तृण एगुणतीसउदयद्वाणं । तं भासापज्जत्तगदपढमसमय पहुदि जाव जीविदं ताव होइ । जहणेण दसवाससहस्साणि अंतोमुहुत्तणाणि, उक्करसेण तेत्तीस सागरोवमाणि [अंतोमुहुत्तणाणि ] | एदस्स वि इक्को चेव भंगो १ । एदे पंच भंगा ५ । सव्वणामकम्म उदयवियप्पा छावत्तरि सदा एयारस ७६११ । ६४२ "ति-दु-इगि णउदी अट्ठाहिय-चदु-दुरहिय असिदि असिदिं च । ऊणासिदि अट्ठत्तर सत्तत्तरि दस य णव संता ॥" संतगडाणाणि । तं जहा - णिरयगइ तिरियगइ मणुसगइ देवगइ एइंदिय-बेइंदिय-ते इंदियचरिंदिय पंचिदियजाइ - ओरालिय - वेडव्विय आहार - तेजा - कम्मइयसरीर-ओरालिय - वेडव्वियआहार-तेज-कम्मइयसरीरबंधण - ओरालिय- वेडव्विय- आहार - तेजा - कम्मइयसरीरसंघाद छसंठाणतिण्णि अंगोवंग-छसंघडण - पंचवण्ण-दो गंध- पंचरस - अट्ठफास- चत्तारि आणुपुव्वी - अगुरुगलहुगादि चत्तारि आदावुज्जोव- दो विहायगइ-तसादि दसजुगल- णिमिण- तित्थयरणामाओ पगडीओ घेत्तण तेणउदितद्वाणं ६३ । एदाओ चेव तित्थयरविरहियाओ वाणउदिसंतद्वाणं ६२ । आहारदुगविरहियाओ तेणउदिपगडीओ घेत्तूण इक्काणउदिसंतद्वाणं । एदाओ तित्थयरविरहियाओ तृण उदित १० । णउदिसंतद्वाणादो एइंदिएसु देवगइ-देवगइपाओग्गाणुपुव्वीसु उच्चि - ल्लिदेसु अट्ठासीदिसंतद्वाणं पर। अट्ठासीदिदो णिरयगइ-वेडव्वियसरीर-वेउब्विय सरीरंगोवंगणिरयगइपाओग्गाणुपुव्वीसु उब्विल्लिदेसु चउरासीदिसंताणं ८४ । चउरासीदिसंतादो तेउवाकाइए मणुसगइ मणुसगइपाओग्गाणुपुत्री उव्विल्लिदेसु वासीदिसंतट्ठाणं होइ ८२ । तेणउदि - बाणउदि एक्काणउदि [णउदि] संतादो अणियट्टिखवयम्मि णिरयगइ तिरियगइ एइंदिय-वे इंदियतेइंदिय- चउरिंदियजादि-निरयगइ तिरियगइपाओग्गाणपुत्र्वी आदाउज्जोव थावर - सुहुम-साहारणएदासु तेरसपयडीसु खवियासु असीदि ८०, एगुणसीदि ७६, अट्ठहत्तर ७८, सत्तत्तरि ७७ संतट्ठाणाणि हुति । मणुसगइ पंचिदियजाइ मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी तस बादर-पज्जत्त-सुभगआदेज्ज-जसकित्ति - तित्थयरणामाओ पगडीओ घेत्तूण दससंतद्वाणं अजोगिचरमसमए होइ १० । एदाओ चेव तित्थयरवज्जाओ पगडीओ घेत्तृण णवसंतट्ठाणं तम्मि चेव होइ ६ । एवं तेरस संतट्ठाण हुँति । इक्केक्स्स संतट्ठाणस्स इक्केकूको चैव भंगो । १३६४५ | ७६११ । Jain Education International व पंचोदयसंता तेवीसे पणुवीस छब्बीसे । अट्ठ चउरट्ठवोसे व सत्तसुगुतीस तीसम्मि ॥४०॥ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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