Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सत्तरि-संगहो
६४१
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तं सरीरपज्जत्तगए पढमसमयप्पहुदि जाव आणापाणपज्जत्तगओ ण होइ ताव होइ । जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तकालं । एदस्स भंगा ५७६ । एदाओ चेव उस्साससहियाओ पगडीओ घेत्त ण तीसउदयट्ठाणं। तं आणापाणपज्जत्तगए पढमसमयप्पहदि जाव भासापज्जतगओ ण होइ ताव होइ। जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तकालं । एदस्स भंगा पंच सदा छावत्तरी ५७६ । एदाओ चेव सुस्सरदुरसराणमेक्कदरं सहियाओ घेत्तण एक्कतीस-उदयट्ठाणं । तं भासापज्जत्तगए पढमसमयप्पहुदि जाव जीविदंतं ताव होइ जहण्णणंतोमुहुत्तकालं, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि अंतोमुहुत्त णाणि । एदस्स भंगा इक्कारस सदा वावण्णा ११५२ । पंचिंदियतिरिक्खसव्वभंगा चत्तारि सहरस-णवसदा छदुत्तरा ४६०६ । सव्वतिरियभंगा मेलिया एत्तिया ४६६२ ।
मणुसगइसंजुदाणं उदयट्ठाणाणि हुंति दस वेव । चउवीसं वज्जित्ता सेसाणि हवंति णेयाणि ॥३७॥ तित्थयराहाररहिया पगडी मणुसस्स पंच ठाणाणि ।
इगिवीसं छव्वीसं अट्ठावीसूणतीस तीसासु ॥३८॥ पयडी मणुसस्स उदयहाणाणि । तं जहा-इगिवीसं छव्वीसं अट्ठावीसं एगूणतीसं तीसं एदाणि उदयट्ठाणाणि हुंति । जहा-उन्नोवउदयरहियपंचिंदियतिरिक्खाणं तहा वत्तव्वाणि । णवरि मणुसगइआदि भाणियव्वा । एदेसिं भंगा एत्तिया हुंति २६०२ । एवं सामण्णमणुसस्स भणिदं । विसेसमणुसस्स तं जहा-मणुसगइ-पंचिंदियजाइ-आहार-तेज-कम्मइयसरीर-समचउरसरीरसंठाणआहारसरीरंगोवंग-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुगलहुग - उवघाद-तस-बादर-पज्जा
द-तस-बादर-पज्जत्त - पत्तेगसरीर-थिराथिर - सुभासुभ - सुभग-आदिज - जसकित्ति-णिमिणणामाओ पगडीओ घेत्तूण पणुवीस - उदयट्ठाणं आहारसरीर-उहाविदपढमसमयप्पहुदि जाव पज्जत्तगओ होइ ताव होइ । जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तकालं। एदस्स भंगो इक्को चेव १। एदाओ चेव परघादापसत्थविहायगइसहियाओ सत्तावीसउदयट्ठाणं । तं सरीरपज्जत्तगए पढमसमयप्पहुदि जाव आणापाणपज्जत्तगओ ण होइ [ताव होइ]। जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तकालं । एदस्स इक्को भंगो १। एदाओ चेव उस्साससहियाओ पगडीओ
ठावीसउदयटठाणं । तं आणापाणपज्जत्तगए पढमसमयप्पहदि जाव भासापज्जत्तगओ ण होइ ताव होइ जहण्णुक्कस्सेणंतोमुत्तकालं । एदस्स वि भंगो एक्को चेव १। एदाओ चेव पगडीओ सुस्सरसहियाओ घेत्तूण एगूणतीस-उदयट्ठाणं । तं भासापज्जत्तगयपढमसमयप्पहुदि जाव आहारसरीरविउव्विओ ण अच्छइ ताव होइ । जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तकालं । एदस्स वि भंगो एक्को चेव १ । एदस्स सव्वभंगा चत्तारि ४ ।
विसेसमणुसस्स तं जहा-मणुसगइ-पंचिंदियजाइ-ओरालिय-तेज-कम्मइयसरीर-समचउरसरीरसंठाण-ओरालियसरीरंगोवंग-वज्ज-रिसभवहरणारायसरीरसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगरुगलहुग-उवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तंगसरीर-थिर थिर-सुभासुभसुभग-सुस्सर-आदिज-जसकित्ति-णिमिण-तित्थयर-णामाश्रो पगडीओ घेत्तूण एक्कत्तीस-उदयट्ठाणं । तं सजोगिकेवलिरस सत्थाणस्स जपणेण वासपुधत्तं, उक्कस्सेणंतोमुहुत्तमधिय अवस्सूण-पुव्वकोडिकालं। एदस्स इक्को भंगो १। मणुसगइ-पंचिंदियजाइ-तस-बादर-पज्जत्त-सुभग-अणादिज्जजसकित्ति-तित्थयरणामाओ पगडीओ घेत्तण णव-उदयट्ठाणं । तं अजोगिकेवलिम्स । एदस्स इक्को भंगो। एदाओ चेव तित्थयरविरहियाओ पगडीओ घेत्तण अट्ठ-उदयट्ठाणं । एदं पि अजोगिकेवलिस्स । एदस्स वि इको भंगो १। एदे तिण्णि भंगा ३ । मणसगइसव्वभंगा एत्तिया हंति २६०६।
इगिवीसं पणुवीसं सत्तावीसं अट्ठावीसमुगुतीसं ।
एदे उदयट्ठाणा देवगइ-संजुदा पंच ॥३६॥ ८१
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