Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 719
________________ ६५२ पंचसंगहो पगडीओ दुगुंछरहिय-भयसहियाओ घेतण वा अट्ठ-उदयहाणं । एदस्स विदिओ सोलस-भंगो । एदाओ चेव पगडीओ सम्मत्तरहिय-दुगुछासहियाओ घेत्तूण वा अट्ठ-उदयट्ठाणं । एदस्स विदिओ सोलसभंगो। एदाओ चेव पगडीओ भयरहियाओ घेत्तण सत्त-उदयट्ठाणं । एदस्स पढमो सोलस भंगो। एदाओ चेव पगडीओ दुगुकरहिय-भयसहियाओ घेत्तूण वा सत्त उदयट्ठाणं । एदस्स विदिओ सोलस भंगो। एदाओ चेव पगडीओ सम्मत्तसहिय-भयरहियाओ घेत्तूण वा सत्त-उदयट्ठाणं । एदस्स तिदिओ सोलस भंगो। एदाओ चेव पगडीओ सम्मत्तरहियाओ घेत्तूण छ-उदयट्ठाणं । एदस्स वि इक्को चेव सोलस भंगो। सव्वभंगा एत्तिया हुंति १२८ । णवण्णं इक्क सोलस, अट्ठण्हं तिण्णि सोलस, सत्तण्हं तिणि सोलस, छण्हं इक्क सोलसं णव-अट्ठ-सत्त-छपगडीहिं गुणेऊण मेलिया पदबंधा एत्तिया हुति ६६०। कम्मइयकायजोगिम्मि मिच्छादिट्ठिम्मि असंजदसम्मादिट्ठीणं वेउव्वियमिस्सम्मि जहा भणियं तहा भाणियव्वं । मिच्छादिट्ठि-भंगा ८६४ । असंजदसम्मादिट्ठिभंगा १२८ । पदसंख्या ६६०। __ सासणसम्मादिहिस्स अणंताणुबंधि-अपच्चक्खाणावरण- पञ्चक्खाणावरण-संजलणकोहमाणमायालोभाणमेक्कदरं तिण्हं वेदाणमेकदरं हस्सरइ-अरइसोग दुण्हं जगलाणमेक्कदरं भय दुगुछा च एदाओ पगडीओ घेत्तण णव-उदयहाणं । एदस्स इक्को चउवीस भंगो। एदाओ चेव पगडीओ भयरहियाओ घेत्तूण अट्ठ-उदयट्ठाणं। एदस्स पढमो चउवीसभंगो। एदाओ चेव दुगु छरहिय[भय-]सहियाओ घेत्तूण वा अट्ठ-उदयट्ठाणं । एदस्स विदिओ चउवीसभंगो। एदाओ चेव पगडीओ भयरहियाओ घेत्तण सत्त-उदयट्ठाणं। एदस्स इको चउवीस भंगो । एदस्स सव्वे भंगा ६६ एत्तिया हुंति । णवण्हं इक्क चउवीस अट्ठव्हं वे चउवीस, अट्ठण्हं [सत्तण्हं] एक [चउवीस], णव-अट्ठ-सत्तपगडीहिं गुणेऊण मेलिया पदबंधा एत्तिया हुति ७६८ ।। ओरालियमिस्सम्मि मिच्छादिठ्ठि-सासणसम्मादिट्ठीणं जहा कम्मइयकायजोगम्मि भणियं तहा [भाणियव्वं] । मिच्छादिट्ठि-भंगा ६६ । पदसंखा ८६४ । सासणसम्मादिठि-भंगा ६६ । पदसंखा ७६८ । असंजदसम्मादिट्ठिस्स. सम्मत्तं अपञ्चक्खाणावरण-पञ्चक्खाणावरण-संजलणकोहमाणमायालोभाणमेकदरं पुरिसवेद हस्सरइ-अस्इसोग दुण्हं जुगलाममेक्कदरं भय दुगुका च एदाओ पगडीओ घेत्तण णव-उदयट्ठाणं । एदस्स इक्को अट्ठभंगो। एदाओ चेव पगडीओ भयरहियाओ घेत्तूण अठ्ठ-उदयट्ठाणं । एदस्स पढमो अट्ठभंगो । एदाओ चेव पगडीओ दुगुछरहिय-भयसहियोओ घेत्तण वा अट्ठ-उदयट्ठाणं ! एदस्स विदिओ अट्ठभंगो । एदाओ चेव पगडीओ सम्मत्तरहिय-दुगु छसहियाओ घेत्तण वा अट्ठ-उदयट्ठाणं ! एदस्स तदिओ अट्ठभंगो। एदाओ चेव पयडीओ भयरहियाओ दुगुछसहियाओ घेत्तृण सत्त-उदयट्ठाणं । पदस्स पढमो अट्ठभंगो। एदाओ चेव पगडीओ दुगुकरहिय-भयसहियाओ घेत्तण सत्तउदयट्ठाणं । एदस्स विदिओ अट्ठभंगो । एदाओ पगडीयो सम्मत्तरहिय-भयसहियाओ घेत्तण वा सत्त-उदयट्ठाणं । एदस्स तदिओ अट्ठभंगो । एदाओ चेव पगडीओ सम्मत्तरहियाओ घेत्तर्ण छ-उदयट्टाणं । एदस्स वि इक्को अठ्ठभंगो। सव्वभंगा एत्तिया हुति ६४ । णवण्हं इक्क अट्ठ, अट्ठण्हं तिण्णि अट्ठ, सत्तण्हं तिण्णि अट्ठ, छण्डं इक्क अट्ठ । णव - अट्ठ-सत्त - छपगडीहिं गुणेऊण मेलिया पदबंधा एत्तिया हुति ४८०। वेउव्वियकायजोगिम्मि मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिठ्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठि-भसंजदसम्मादिट्ठीणं जहा गुणट्ठाणाणि रुंभेऊणं भणियं तहा भाणियव्वं । मिच्छादिट्ठि-भंगा १६२ । पदसंखा १६३२ । सासणसम्मादिठ्ठि-भंगा ६६ । पदसंखा ७६८ । सम्मामिच्छादिट्ठि-भंगा ६६ । पदबंधा ७६८ । असंजदसम्मादिटिंट-भंगा १६२ । पदबंधा १४४० । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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