Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 693
________________ ६२६ पंचसंगहो सुहुमणिगोद-अपजत्तगस्स पढमे जहण्णगे जोगे । सत्तण्हं पि जहण्हं आउगबंधी वि आउस्स ॥१२६॥ 'सुहमणिगोद-अपज्जत्तगस्स' आउगरस वजाणं सत्तण्णं कम्माणं जहण्णपदेसबधो सुहुमणिगोद-अपज्जत्ततब्भव-पढमसमए[य]त्थ जहण्णजोगिस्स आउगवजसत्तकम्माणि बधमाणस्स जहण्णपदेसबधे वट्टमाणस्स । आउगस्स जहण्ण-पदेसबंधे सुहमणिगोद जीव-अपज्जत्तगस्स खुद्दाभवग्गहण-तदिय-तिभागपढमसमए आउगं बंधमाणस्स अट्ठविधबधगस्स जहण्णपदेसबधे वट्टमाणस्स। सत्तरस सुहुमसरागे पण अणियट्टी य सम्मओ णवयं । अअदी विदियकसाए देसयदी तदियगे जददि ॥१२७॥ 'सत्तरस सुहुमसरागे' पंचणाणावरण-चउर्दसणावरण-साद-जसकित्ति-उच्चगोद-अंतराइयाणं सत्तरसण्हं पगडीणं सुहुमसंपराइय आ[रुहह्माणस्स]उवसामगस्स वा खवगस्स वा मोहाउगवज्ज छकम्माणि ब धमाणस्स उक्करसजोगिस्स उक्करस-पदेसबंधे वट्टमाणस्स। कोहसंजलणस्स उक्कस्सपदेसबधो अणियट्रिबादर-संपराइय-उवसामगस्स खवगरस वा मोहणीय-चउविहब धमाणस्स उक्कस्सजोगिस्स उक्करसपदेसबंधे वट्टमाणस्स । एवं माणसंजलणस्स । णवरि मोहतिविहब धगस्स । एवं मायासंजलणस्स वि। णवरि मोहविहबधगस्स । एवं लोभसंजलणस्त वि । णवरि मोहएगविधबधगस्स। पुरिसवेदस्स उकासपदेसबधो अणियट्रिबादरसंपराइय-उवसामगस्स वा खवगस्स वा उक्कस्सजोगिरस मोहपंचविह-बधगस्स उकस्सपदेसबधे वद्रमाणस्स । 'सम्मओ णवयं' णिहा-पचलाणं उक्कस्सपदेसबधो चउगइपज्जत्त-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजद सम्मादिट्टितिरिक्ख-मणुस-संजदासंजद-पमत्तापमत्त-अपुवकरणसत्तमभाग-पढमभागगयाणं उकस्सजोगीणं आउगवज सत्तकम्माणि ब धमाणाणं उक्करसपदेसबांधे वट्रमाणाणं । एवं हस्स-रइ-भय-दुगुंछाणं । णवरि अपुवकरणचरमसमओ त्ति भाणियव्यं । एवमरदि-सोगाणं । णवरि पमत्तसंजदो त्ति भाणियव्यं । तित्थयरस्स उक्करस-पदेसबंधो मणुसपज्जत्त-असंजदसम्मादि ट्ठि-संजदासंजद पमत्तअपमत्तसंजद-अपुवकरण-सत्तमभागगयाणं एगणतीस-णामाए सह आउगवज्ज सत्तकम्माणि ब माणाणं उक्करसजोगीणं उक्सस्सपदेसबधे वट्टमाणाणं होइ । 'अयदो विदियकसाए' अपञ्चक्खाणावरणचउक्करस उक्सस्सपदेसबधो चउगइपज्जत्त-असंजद-सम्मादिहिस्स सत्तविहबधगरस उक्कस्स जोगिस्स उक्करसपढ़ेसबधे वट्टमाणस्से । एवं पञ्चक्खाणावरणच उक्कस्स । णवरि तिरिक्ख-मणुससंजदासजदरल। तेरस बहुप्पदेसो सम्मो मिच्छो य कुणदि पगडीओ। आहारमप्पमत्तो सेसपदेसुक्कडो मिच्छो ॥१२८।। 'तेरस बहुप्पदेसो' देवगइ-वे उव्वियसरीर-समचउरससरीर-हुंडसंठाण-वे ब्वियसरीर-अंगोवंग-देवगइपाओग्गणुपुत्वी-पसत्थविहायगइ-सुभग-सुस्सर-आदिजाणं उकस्स-पदेसबंधो तिरियमणुस-सणिपंचिंदियपज्जत्तमिच्छादिट्टिप्पहुइ जाव अपुव्वकरणसत्तमभागगयाणं णववीसणामाए सह सत्तविहब धयाणं उक्कस्सजोगीण उक्करसपदेसबधे वट्टमाणस्स [ -णाणं]। मणसाउगस्स पदेसबधो सत्तमपुढवी-असंखेज्जवस्साउा वज्ज चउगइ-सण्णि-पज्जत्त-मिच्छादिट्टि [स्स ] देवणेरइय-पज्जत्त असंजदसम्मादिहिस्स वा अट्ठविहबधस्स वा उ कस्सजोगिस्स उक्कस्सपदेसबधे वट्टमाणस्स । देवाउगस्स उक्कस्सपदेसबधो तिरिक्ख-मणुस-सण्णि-पज्जत्त-मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्टि-असंजदसम्मादिहि-संजदासंजद-पमत्तापमत्तसंजदाणं अट्ठविहब धयाणं उक्कस्स. जोगीणं उक्करसपदेसबधे वट्टमाणाणं । असादवेदणीयस्म उक्कस्सपदेसबधी चउगइ-सण्णि-पज्जत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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