Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 698
________________ पंचमो सत्तरि-संगहो वंदित्ता जिणचंदं दुण्णय-तम-पडल-पाउयं वरदं । सत्तरिगाहसमुदं बहु-भंग-तरंग-संजुत्तं ॥ सिद्धपदेहिं महत्थं बंधोदयसंतपगडिठाणाणि । वुच्छं सुण संखेवं णिस्सदं दिविवादादो ॥१॥ 'सिद्धपदे हिं महत्थं महत्थं]णाम ख्यातनिपातोपसर्गविरहितं, सभावसिद्धेहिं पदेहिं बधोदयसंतपगडिठाणाणं वुच्छं महत्थं संखेवं सुण दिढिवादस्स णिस्सदं। उदयगहणेण उदीरणा वि गहिदा । सत्तगहणेण उवसमणं खवणं च गहियं ।। कदि बधंतो वेददि कइया कदि पगडिठाणकम्मंसा । मूलुत्तरपगडीसु य भंगवियप्पा य बोधव्वा ॥२॥ 'कदि बंधंतो वेददि' कदि पगडिट्ठाणाणि बंधमाणो केत्तियाणि पगडिहाणाणि वेदेदि, कदि वा संतकम्मपगडिट्ठाणाणि तस्स । मूलपगडीसु उत्तर पगडीसु च भंगवियप्पा जाणियव्वा । अट्टविह सत्त सो[ छ ]बंधगेसु अट्ठव उदयकम्मंसा । एगविधे तिवियप्पो एगवियप्पो अबंधम्मि ॥३॥ अट्ठविहबंधगेसु सत्तविहबंधगेसु छव्विबंधएसु च अट्ठविह-उदयकम्माणि, अट्ठेव संतकम्माणि हुति । वेदणीय-एगविहबंधगे उवसंतकसाये मोहणीयवज सत्त उदयकम्माणि अठ्ठ संतकम्माणि । एस इक्को वियप्यो । खीणकसाए मोहणीयवज्ज सत्त उदयकम्माणि । संतकम्माणि सत्त । एस विदिओ वियप्पो। सजोगिकेवलिम्मि चत्तारि अघादिकम्माणि उदय-संताणि त्ति । एस तदिओ वियप्पो । अबंधम्मि अजोगिकेवलिम्हि चत्तारि अघादिकम्माणि उदय-संताणि त्ति एक्को चेव वियप्पो । सत्तट्ठ बंध अट्ठोदयंस तेरससु जीवठाणेसु । इकम्हि पंच भंगा दो भंगा हुंति केवलिणो ॥४॥ 'सत्तट्ठबंध अट्ठोदयंस' सण्णि-पंचिंदिय पज्जत्त वज्ज तेरससु जीवसमासेसु सत्तकम्माणि अट्ठकम्माणि वा बंधट्ठाणाणि, उदय-संतकम्मट्ठाणाणि अठ्ठ । 'इक्कम्हि पंच भंगा' सण्णिपंचिंदिय-पजत्त जीवसमासेसु अट्ठबंधोदयसंतकम्मट्ठामाणि त्ति एओ वियप्पो। सत्त कम्माणि बंधट्ठाणं, अट्ठ उदय-संतकम्मट्ठाणाणि त्ति विदिओ वियप्पो। छकम्माणि बंधट्ठाणं अट्ठ उदय-संतकम्मट्ठाणाणि त्ति तदिओ वियप्पो। वेदणीयमेकं चेव बंधट्ठाणं, सत्त उदयकम्माणि, संतकम्माणि अट्ठ इदि च उत्थो वियप्पो। देदणीयमेकं चेव बंधट्ठाणं, सत्तउदय-सत्तसंतकम्मट्ठाणाणि, पंचमो वियप्पो । 'दो भंगा हुंति केवलिणो' सजोगिकेवलिस्स वेदणीयमेकं चेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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