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सप्ततिका विरताविरतगुणस्थानमें पाँचसौ छिहत्तर (५७६) भङ्ग होते हैं । दोनों विरत अर्थात् प्रमत्त और अप्रमत्तविरतमें भी उतने ही अर्थात् पाँच सौ छिहत्तर, पाँचसौ छिहत्तर भङ्ग जानना चाहिए ॥३७६॥
छण्णउदिं च वियप्पा अउव्वकरणस्स होंति णायव्वा । पंचेव सहस्साई वेसदमसिदी य भंगा हु ॥३७७॥
१६।५२००। अपूर्वकरणमें छथानबै (६६) भङ्ग होते हैं। इस प्रकार आठों गुणस्थानोंके लेश्याकी अपेक्षा उदयस्थानके विकल्प पाँच हजार दो सौ अस्सी (५२८०) होते हैं ॥३७७॥
अणियट्टिय सत्तरसं पक्खिवियव्वा हवंति पुव्वुत्ता ।
तेहिं जुआ सन्वे वि य भंगवियप्पा हवंति णायव्वा ॥३७८॥ इन उपर्युक्त भङ्गोंमें अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायके पूर्वोक्त सत्तरह भङ्ग और प्रक्षेप करना चाहिए । इस प्रकार इनसे युक्त होने पर जो आठों गुणस्थानोंके उउयविकल्प हैं, वे सर्व मिलकर लेश्याकी अपेक्षा मोहके उदयविकल्प हो जाते हैं ॥३७८॥
अणियहि-सुहुमाणं उदया १७ । सुक्कलेप्सगुणा १७ । सव्वे वि मेलिया
अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायके उदय-विकल्प १७ होते हैं। उन्हें एक शुक्ललेश्यासे गुणा करने पर १७ भङ्ग हो जाते हैं । ये उपर्युक्त सर्व भंग कितने होते हैं, इसे भाष्यकार स्वयं बतलाते हैं
बावण्णं चेव सया सत्ताणउदी य होति बोहव्वा । उदयवियप्पे जाणसु लेसं पडि मोहणीयस्स ॥३७६॥
५२१७ । मोहनीयकर्मके लेश्याओंकी अपेक्षा सर्व उदयविकल्प बावन सौ सत्तानबै (५२६७) होते हैं, ऐसा जानना चाहिए ॥३७६॥ इन उदयस्थानोंके भङ्गोंकी संदृष्टि इस प्रकार है
गुणस्थान लेश्या उदयस्थान गुणकार भङ्ग मिथ्यात्व
२४ ११५२ सासादन मिश्र अविरत
११५२ देशविरत
५७६ प्रमत्तविरत
પૂ૭૬ अप्रमत्तविरत
५७६ अपूर्वकरण ..
२४ १६ अनिवृत्तिकरण १
१२ १२
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सूक्ष्मसाम्पराय
सर्व भङ्ग-५२६७
1. सं० पञ्चसं० ५,३८५ ।
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