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पञ्चसंग्रह
801201७९।७८७७1 केवलयुगले केवलज्ञाने केवल दर्शने च उदयस्थानचतुष्कमुपरितनम् ३०।३१।। केवलिसमुदातापेक्षया उदयदशकम् २०१२११२६।२७।२८।२६।३०।३१11८। सत्त्वस्थानानि पट उपरितनानि अशीतिकादीनि पढित्यर्थः ८०।७१७८७७।१०।। तत्र बन्धो नास्ति॥ ४४६॥
इति ज्ञानमार्गणा समाप्ता । मनः पर्ययज्ञानियोंके बन्धस्थान और सत्तास्थान तो मति-श्रतादि ज्ञानियोंके समान वे ही पूर्वोक्त जानना चाहिए। किन्तु उदयस्थान केवल तीस प्रकृतिक ही होता है । केवलज्ञानियों और केवलदर्शनियोंके (बन्धस्थान कोई नहीं होता।) उदयस्थान उपरिम चार तथा सत्तास्थान उपरिम छह होते हैं ।।४४६॥
मनः पर्ययज्ञानियोंके बन्धस्थान २८, २९, ३०, ३१, १ ये पाँच; उदयस्थान ३० प्रकृतिक एक तथा सत्तास्थान ६३, १२, ११,६०,८०, ७६, ७८ और ७७ ये आठ होते हैं केवल-युगलवालोंके उदयस्थान ३०, ३१, ६ और ८ ये चार; तथा सत्तास्थान ८०, ७६, ७८, ७७, १० और ६ ये छह होते हैं।
सामाइय-छेदेसुं बंधा अडवीसमाइ पंचेव ।
पणुवीस सत्तवीसा उदया अडवीस तीस उणतीसा ॥४४७॥ सामाइय-छेदेसु बंधा-२८।२६।३०।३१।१। उदया ५-२५।२७।२८।२६।३०।
संयममार्गणायां सामायिकच्छेदोपस्थापनयोबन्धस्थानान्यष्टाविंशतिकादीनि पन्चैव २८२६॥३०॥ ३१।। उदयस्थानानि पञ्चविंशतिक-सप्तविंशतिकाष्टाविंशतिक नवविंशतिक-त्रिंशत्कानि पञ्च २५।२७॥२८॥ २६।३०। ॥४४७॥
संयममार्गणाकी अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयतोंके बन्धस्थान अट्ठाईस आदि पाँच होते हैं। उद्यस्थान पञ्चीस, सत्ताईस, अठाईस, उनतीस और तीस; ये पाँच होते हैं ।।४४७॥
सामायिक-छेदोपस्थाएनासंयतोंमें बन्धस्थान २८, २६, ३०,३१, १ ये पाँच तथा उदयस्थान २५, २७, २८, २६ और ३० ये पाँच होते हैं।
पढमा चउरो संता उवरिम दो वजिदूण चउ हेट्ठा।
संता चउरो पढमा परिहारे तीरामेव उदयं तु ॥४४८॥ संता ८-६३।१२।११।१०।८०७६।७८७७ परिहारे उदया १-३० । संता ४-१३।६२।६१।६०
प्रथमचतुःसत्त्वस्थानानि त्रिनवतिकादिचतुष्कम् , उपरिमदशक-नवकद्वयं वर्जयित्वा चतुरधःस्थसत्त्वस्थानानि अशीतिकादिचतुष्कमित्यष्टौ सत्वस्थानानि ६३११२।११।१०1८०७६७८१७७। परिहारविशुद्धौ सत्त्वस्थानानि चत्वारि प्रथमानि त्रिनवतिकादीनि । त्रिंशत्कमुदयस्थानमेकम् ३० ॥४४८॥
उन्हीं दोनों संयतोंके सत्त्वस्थान प्रारम्भके चार, उपरिम दोको छोड़कर अधस्तन चार, ये आठ होते हैं। परिहारविशुद्धिसंयतोंके तीस प्रकृतिक एक उदयस्थान और प्रारम्भके चार सत्तास्थान होते हैं ॥४४८॥
सामायिक-छेदोपस्थापना संयतोंके सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६०, ८०, ७६, ७८ और ७७ ये आठ होते हैं। परिहारविशुद्धिसंयतोंके उदयस्थान ३० प्रकृतिक एक और सत्तास्थान ६३, ६२, ६१ और ६० ये चार होते हैं।
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