Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 672
________________ सतग-संगहो ६०५ एदाओ वीसुत्तरसदबंधपगडी णाम वुचंति । सव्वीसं पगडीणं आहारसरीर-आहारसरीरंगोवंगतित्थयरणामाओ वज्ज सेसबंधपगडीओ मिच्छादिट्ठी बंधइ ११७ । सोलस मिच्छत्ता आसादंता य होइ पणुवीसं । तित्थयराउगसेसा अविरद-अंता दु मिस्सस्स ॥६१॥ ___ मिच्छत्त-णqसगवेद णिरयाउ णिरयगइ एइंदिग बीइंदिय तीइंदिय चदुरिंदियजादि हुंडसंठाणं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडण णिरयगइपाओग्गाणुपुत्वी आदाव थावर सुहुम अपज्जत्तसाधारणसरीर [ एदाओ] सोलस पगडीवज्जियाओ इक्कुत्तरसयपगडीओ सासणसम्मादिट्ठिणोट्ठी] बंधइ १०१। थीणगिद्धीतिग अणंताणुबंधीचदुक्क इत्थिवेद तिरियाउग तिरिक्खगइ समचउरहुंडवज्ज चउसंठाण वज्जरिसभवइरणाराय-असंपत्तसेवट्टा वज्ज चउसंघडण तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुठवी उज्जोय अप्पसत्थविहायगइ दुभग दुस्सर अणादिज्ज णिच्चगोदं[एदाओ] पणुवीसपगडी वज्जियाओ एगुत्तरसदपगडीओ तित्थयरसहियाओ असंजदसम्मादिट्ठी बंधइ ७७ । मणुस-देवाउगतित्थयरवज्जियाओ पगडीओ सत्तसत्तरि मिच्छादिट्ठी बंधइ ७४। अविरद-अंता दु दसं विरदाविरदंतिया उ चत्तारि । छच्चेव पमत्ता इक्का पुण अप्पमत्ता ॥६२॥ __ अपञ्चक्खाणावरणचदुक्क मणुसाउग मणुसगइ ओरा-[लियसरीर-ओरा-]लियसरीरअंगोवंगं वज्जरिसभ [वइरणारायसंघडणं] मणुसगइपाओग्गाणुपुत्वी [एदाओ] दसपगडिवज सत्तत्तरि पगडीओ संजदासंजदो बंधइ ६७ । पञ्चक्खाणावरणचउक्कं वज सत्तसहिपगडीओ पमत्तसंजदो बंधइ ६३ । असाद अरदि सोग अथिर असुभ अजसकित्ती छ पगडीवजाओ आहारदुगसहियाओ तेसहि पगडीओ अपमत्तो बंधइ ५६ । देवाउग वज एगूणसहि पगडीओ अपुव्वकरणो बंधइ पढम-सत्तमभागम्मि ५८ । दो तीसं चत्तारि य भागा भागेसु संखसण्णाओ। चरिमेसु जहासंखा अपुवकरणंतिया हुँति ॥६३।। णिहा-पयलाओ वज्ज अट्ठवण्णपगडीओ विदियभागपढमसमयप्पहुडि छ? भाग जाव चरमसमओ त्ति अपुत्वकरणो बंधइ ५६ । देवगइ चिंदियजाइ वेउव्विय आहार तेज कम्मइयसरीर समचउरसरीरसंठाण [वेउठिवय-] वेउव्वियसरीरंगोवंग वण्णाइचउकं देवगइपाओग्गाणुपुवी अगुरुगलहुगादिचउक्क पसत्थविहायगइ तस बादर पज्जत पत्तेयसरीर थिर सुह सुहग सुस्सर आदिज्ज णिमिण तित्थयरं तीस पगडीओ वज्ज छप्पण्ण पगडीओ उवरिमसत्त-पढमसमयप्पहुडि जाव चरमसमओ ति अपुवकरणो बंधइ २६। हम्स रइ भय दुगुंछा चत्तारि पगडीओ वज्ज छव्वीस पगडीओ अणियट्टिअद्धाए पढमसमयप्पहुइ संखिज्जभागेसु बंधइ २२ । संखेजदिमे सेसे आढत्ता बादरस्स चरमंतो । पंचसु इक्केकंता सुहुमंता सोलसा हुंति ॥६४॥ तओ [अंतोमुहुत्तं पुरिसवेदं वज्ज वावीस पगडीओ बंधइ २१ । तओ अंतोमुहुत्तं कोहसंजलणं वज्ज इगिवीस पगडीओ बंधइ २० । तओ] अंतोमुहुत्तं माणसंजलणं वज्ज वीसं पगडीओ बंधइ १६ । तओ अणियट्टिचरमसमओ त्ति मायसंजलणं वज्ज एगुणवीसं पगडीओ बंधइ १८ । लोभसंजलणं वज्ज अट्ठारसपगडीओ सुहुमसंपराइगो बंधइ १७ । पंच णाणावरण चउ दंसणावरण जसकित्ती उच्चगोद पंच अंतराइय सोलस पगडीओ वज्ज सत्तरस पगडीओ उवसंत-खीणसजोगिकेवलिणो बंधंति, सादं बंधंति त्ति वुत्तं होदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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