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सप्ततिका
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करणसूचमसाम्परायोपशान्तक्षीणकषायेषु प्रत्येक नव नव योगा । भवन्ति । सयोगे सप्त योगाः । अयोगे शून्यं ० । सयोगान्तयोगाः सन्ति, अयोगे न सन्ति ॥३२८॥
पहले दो गुणस्थानों में तेरह तेरह योग होते हैं। तीसरेमें दश योग होते हैं। चौथेमें तेरह योग होते हैं । पाँचवें में नौ और छठेमें ग्यारह योग होते हैं। इससे आगे सातवेंसे बारहवें तक छह गुणस्थानोंमें नौ नौ योग होते हैं । सयोगिकेवलोके सात योग होते हैं। अयोगिकेवलीके कोई योग नहीं होता है ॥३२८।
गुणस्थानोंमें योग इस प्रकार होते हैंमि० सा० मि० अवि० देश० प्रम० अप्र० अपू० अनि० सू० उप० क्षीण. सयो० अयो० १३ १३ १० १३ १ ११ ६
६ ६ ६ ७ ० अब पहले मिथ्यादृष्टिके योगसम्बन्धी भंगों का निरूपण करते हैं--
मिच्छादिहिस्सोदयभंगा अठेव होंति जिणभणिया। ते दसजोगे गुणिया भंगमसीदी य पञ्जत्ते ॥३२६।।
उदया ८ दसजोयगुणा ८० ।
मि०
मिथ्यादृष्टेः स्थानानि दशकादीनि चत्वारि हा अनन्तानुबन्ध्यु दयरहितानि नवकादीनि चत्वारि
मि०
मा८ मिलित्वा अष्टौ उदयभङ्गा भवन्ति, जिनैणितास्ते अष्टौ उदयविकतपाः ८ दशभिर्योगै १० गुणिता
उदयस्थानविकल्पाः ८० मिथ्यादृष्टेः पर्याप्तस्य भवन्ति ॥३२६॥
मिथ्या दृष्टिके अनन्तानुबन्धीके उदयसहित दश आदि चार उदयस्थान और अनन्तानुबन्धीके उदयसे रहित नौ आदि चार उदयस्थान इस प्रकार आठ उदयस्थान जिन भगवान्ने कहे हैं। उन्हें पर्याप्त दशामें सम्भव दश योगोंसे गुणित करने पर उदयस्थान-सम्बन्धी अस्सी भङ्ग हो जाते हैं ॥३२६।।
मिथ्यात्वमें उदयस्थान ८ को १० योगोंसे गुणा करने पर पर्याप्त मिथ्यादृष्टिके ८० भङ्ग होते हैं।
तस्सेव अपजत्ते उदयवियप्पाणि होति चत्तारि । ते तिण्णि-मिस्सजोगेहिं गुणिया वारसा होति ॥३३०॥
॥१२॥
तस्यैव मिथ्यादृष्टरपर्याप्तकाले उदयस्थानविकल्पाः हा चत्वारो भवन्ति । ते चत्वारो भङ्गाः ४
औदारिकमिश्र-वैक्रियिकमिश्र-कार्मणयोगैस्त्रिभिगुणिता द्वादशोदयस्थानविकल्पा अपर्याप्तमिथ्यादृष्टी भवन्ति १२ ॥३३०॥
उसी अपर्याप्त मिथ्याटिके उदयस्थान-सम्बन्धी विकल्प चार ही होते हैं। उन्हें अपर्याप्तकालमें सम्भव तीन मिश्रयोगोंसे गुणा करने पर बारह भङ्ग होते हैं ॥३३०॥
अपर्याप्त मिथ्यादृष्टिके उदय-विकल्प ४ और योग भङ्ग १२ होते हैं।
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