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पञ्चसंग्रह
६।१।४।३।२।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर ३४५६ भङ्ग होते हैं। प्रथम प्रकार
६।१।४।२।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर १६२ भङ्ग होते हैं। द्वितीय प्रकार
६।६।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर १०३६८ भङ्ग होते हैं।
६।६।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर ५७६ भङ्ग होते हैं । इस प्रकार सासादन गुणस्थानमें सोलह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका जोड़ १४५१२ होता है।
सासादनसम्यग्दृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले सत्तरह बन्ध-प्रत्यय सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए वीजभूत कूटकी ,
__ का० अन० भ० रचना इस प्रकार है--
इंदिय छक्कय काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयजुयलं सत्तरस जोगो ॥१५८॥
११६४।१।२।२।१ एदे मिलिया १७ । १।६।४।१।२।२।१ एकीकृताः १७ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ६.१।४।३।२।१२। वै० मि० ६।१४॥ २१२॥ एते परस्परेण गुणिताः १७२८ । १६ ॥१५॥
अथवा सासादनगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; ये सत्तरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१५८।।
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है--१+६+४+१+२+२+१= १७ । एदेसिं च भंगा-६।१।४।३।२।१२ एदे अपणोपणगुणिदा = १७२८ ६।१।४।२।१ एदे अण्णोण्णगणिदा = ६६
एए सव्वे वि मिलिए = १८२४ सवे मिलिया--
४५१६४८। सासादनगुणढाणस्स भंगा समत्ता । [ सप्तदशप्रत्ययानां सर्वे भङ्गाः १८२४ । ] जघन्यदश-मध्यमैकादशादि-सप्तदशप्रत्ययानां सर्वे मीलिताः भंगाः चतुलकोनषष्टिसहस्न-षट्शताऽष्टचत्वारिंशतः उत्तरोत्तरविकल्पाः ४५६६४८ सासादनसम्यग्दृष्टिषु भवन्ति ।
सत्तरह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्ग उक्त दोनों अपेक्षाओंसे इस प्रकार उत्पन्न होते हैं६।१४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर १७२८ भङ्ग होते हैं। ६।१।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर ६६ भङ्ग होते हैं । इन सर्व भङ्गोंका जोड़--१८२४ होता है।
इस प्रकार सासादनगुणस्थानमें दशसे लेकर सत्तरह बन्ध-प्रत्ययों तकके सर्व भङ्गोंका प्रमाण ४५६६४८ होता है । जिसका विवरण इस प्रकार हैं
दश बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्ग १०६४४ ग्यारह
४६२४८ बारह
, १०२१४४
१२७६८० चौदह - " " " १०२१४४ पन्द्रह " , " ५१०७२
तेरह
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