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पञ्चसंग्रह
होता है, उसके अनन्तानुबन्धि चतुष्क और मिथ्यात्व इन पाँचके तय हो जाने पर तेईस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । पुनः उसीके सम्यग्मिथ्यात्वका क्षय हो जाने पर बाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । यह बाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि जीव की अपेक्षा चारों ही गतियों में सम्भव है । इसी प्रकार आठप्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए भी सम्यग्मिथ्यादृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि जीवोंके क्रमशः पूर्वोक्त तीन और पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। नौ प्रकृतिक उद्यस्थानके रहते हुए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु अविरतों में नौप्रकृतिक उदयस्थान वेदकसम्यग्दृष्टियों के ही होता है और वेदकसम्यग्दृष्टियोंके अट्ठाईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतिक चार सत्त्वस्थान पाये जाते हैं, अतः यहाँ पर भी उक्त चार सत्तास्थान होते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टिके सत्तरहप्रकृतिक बन्धस्थान, सात, आठ और नौप्रकृतिक तीन उदयस्थान तथा अट्ठाईस, सत्ताईस और चौबीस प्रकृतिक तीन सत्तास्थान होते हैं । अविरत - सम्यग्दृष्टियोंमें उपशमसम्यग्दृष्टि के सत्तरहप्रकृतिक एक बन्धस्थान, छह, सात और आठ प्रकृतिक तीन उदयस्थान, तथा अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक दो सत्तास्थान होते हैं । क्षायिकसम्यग्दृष्टि के सत्तरह प्रकृतिक एक बन्धस्थान, छह, सात और आठ प्रकृतिक तीन उदयस्थान, तथा इक्कीसप्रकृतिक एक सत्तास्थान होता है । वेदकसम्यग्दृष्टिके सत्तरहप्रकृतिक एक बन्धस्थान सात, आठ और नौ प्रकृतिक तीन उदयस्थान, तथा अट्ठाईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतिक चार सत्तास्थान होते हैं ।
तेरहप्रकृतिक बन्धस्थानमें अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिक पाँच सत्त्वस्थान होते हैं । तेरह प्रकृतियोंका बन्ध देशविरतोंके होता है । वे दो प्रकार के होते हैं - एक तिर्यंच, दूसरे मनुष्य । इनमें जो तिर्यच देशविरत हैं, उनके चारों ही उदयस्थानोंमें अट्ठाईस और चौवीस प्रकृतिक दो सत्त्वस्थान होते हैं। इनमें से अट्ठाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान तो उपशमसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि इन दोनों प्रकारके देशविरत तिर्यंचों के होता है । उसमें भी जो प्रथमोपशमसम्यक्त्त्वको उत्पन्न करनेके समय ही देशविरतिको प्राप्त करता है, उसी देशविरतके उपशमसम्यक्त्त्वके रहते हुए अट्ठाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । जो देशविरत मनुष्य हैं उनके पाँच प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक तीन सत्त्वस्थान होते हैं । छप्रकृतिक और सातप्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए प्रत्येक में अट्ठाईस, चौवीस, तेईस और इक्कीस प्रकृतिक पाँच सत्त्वस्थान होते हैं । तथा आठप्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए अट्ठाईस, चौवीस, तेईस और बाईस प्रकृतिक चार सत्त्वस्थान होते हैं ।
नौ प्रकृतिक बन्धस्थान प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके होता है । इनके चार, पाँच, छह और सात प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं । इनमें से चार प्रकृतिक उदयस्थानके साथ दोनों गुणस्थानों में अट्ठाईस, चौवीस और इक्कीस प्रकृतिक तीन ही सत्त्वस्थान होते हैं; क्योंकि यह उदयस्थान उपशमसम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टिके ही होता है । पाँच और छह प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए पाँच-पाँच सत्त्वस्थान होते हैं, क्योंकि ये उदयस्थान तीनों प्रकारके सम्यदृष्टि जीवोंके सम्भव हैं । किन्तु सातप्रकृतिक उद्यस्थान वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके हो होता है । अतएव यहाँ इक्कीसप्रकृतिक सत्त्वस्थानसम्भव नहीं है; शेष चार ही सत्त्वस्थान होते हैं ।
पाँच प्रकृतिक बन्धस्थान में द्विकप्रकृतिक एक उदयस्थान और अट्ठाईस, चौबीस, इक्कीस, तेरह, बारह और ग्यारह ये छह सत्तास्थान होते हैं । इनमेंसे उपशमश्रेणीकी अपेक्षा आदि के तीन सत्तास्थान पाये जाते हैं । तथा क्षपकश्रेणीकी अपेक्षा इक्कीस, तेरह, बारह और ग्यारह ये चार सत्तास्थान होते हैं । जिस अनिवृत्तिबादरसंयतने आठ मध्यम कषायों का क्षय नहीं किया, उसके इक्कीसप्रकृतिक सत्तास्थान होता है । उसीके आठ कषायोंका क्षय होने पर तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । पुनः नपुंसकवेदका क्षय होने पर बारहप्रकृतिक सत्तास्थान होता
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