________________
सप्ततिका
३८१
स्थान होता है। नरकगति-सम्बन्धी वैक्रियिककाययोग और वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें भी देवसम्बन्धी उदयस्थान होते हैं, किन्तु उनकी उदय-प्रकृतियोंमें अन्तर पड़ जाता है, सो स्वयं विचार लेना चाहिए।
आहारदुगे णियमा पमत्त इव सव्वट्ठाणाणि । थी-पुरिसवेयगेसु य पंचिंदिय-उदयठाणभंगमिव ॥१६९॥ णउंसए पुण एवं वेदे ओघवियप्पा य होंति णायव्वा ।
उदयट्ठाण कसाए ओघभंगमिव होइ णायव्वं ॥२०॥ आहारकद्विके प्रमत्तोक्तोदयस्थानानि । किन्तु आहारककाययोगे २७२८।२६।। आहारकमिश्रकाययोगे २५ उदयस्थानम् । स्त्री-पुरुपवेदयोः पजेन्द्रियोक्तोदयस्थानभङ्गरचनावत् । किन्तु पुंवेदे उदयस्थानानि २१।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१। स्त्रीवेदे नामप्रकृयुदयस्थानानि २१।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१ । नपुंसकवेदे गुणस्थानोक्तोदयस्थानानि २१२४।२५।२६।२७।२८।२६।३०॥३१ भवन्ति । क्रोध-मान-मायालोभकषायेषु ओघभङ्गमिव गुणस्थानोक्तोदयस्थानानि । किन्तु २११२४२५।२६।२७।२८।२६।३० ॥१६६-२००॥
आहारककाययोग और अहारकमिश्रकाययोगमें प्रमत्तगुणस्थानके समान उदयस्थान जानना चाहिए । अर्थात् आहारककाययोगमें सत्ताईस, भट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक तीन उदयस्थान होते हैं। तथा आहारकमिश्रकाययोगमें पच्चीसप्रकृतिक एक उदयस्थान होता है। वे मार्गणाकी अपेक्षा स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें पंचेन्द्रियोंके समान उदयस्थान जानना चाहिए । अर्थात् इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक आठआठ उदयस्थान होते हैं। नपुंसक वेदमें इसी प्रकार ओघविकल्प जानना चाहिए । अर्थात् इक्कीस, चौबीस, पञ्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक नौ उदयस्थान होते हैं कषायमार्गणाकी अपेक्षा चारों कषायोंमें ओघके समान इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक और आठ उदयस्थान जानना चाहिए ॥१६६-२००।
मइ-सुय-अण्णाणेसु य मिच्छा-सासणट्ठाणभंगमिव ।
अवसेसं णाणाणं सण्णिपजत्तभंगमिव जाणिज्जो ॥२०१॥ कुमति-कुश्रुतयोमिथ्यात्व-सासादनोक्तोदयस्थानानि २१०२४।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१। अवशेषज्ञानानां संज्ञिपर्याप्तोक्तोदयस्थानानि जानीयात् । किन्तु विभङ्गज्ञाने नामप्रकृत्युदयस्थानानि २६॥३०॥ ३१ । मति-श्रुतावधिज्ञानेषु नामोदयस्थानानि २१०२५।२६।२७१२८१२६॥३०॥३१॥ मनःपर्यये ज्ञाने ३० । केवल ज्ञाने २०१२१।२६।२७।२८।२६।३०।३११८ ॥२०१॥
ज्ञानमर्गणाकी अपेक्षा कुमति और कुश्रुतज्ञानमें मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थानके समान इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक नौ उदयस्थान होते हैं । शेष छह ज्ञानोंके उदयस्थान संज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिए ॥२०१॥
विशेषार्थ-विभङ्गज्ञानमें उनतीस, तीस और इकतीसप्रकृतिक तीन उदयस्थान होते हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञानके इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस. उनतीस, तीस
और इकतीस प्रकृतिक आठ उदयस्थान होते हैं। मनःपर्ययज्ञानमें तीसप्रकृतिक एक ही उदयस्थान होता है। केवलज्ञानमें इकतीस, नौ और आठ प्रकृतिक तीन उदयस्थान होते हैं। यहाँ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org