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पञ्चसंग्रह
इसी प्रकार तीसप्रकृतिक उदयस्थान उसी जीवके भाषापर्याप्तिके पूर्ण होनेपर दुःस्वरप्रकृतिके मिलानेसे होता है । यहाँपर भी भंग दो ही होते हैं ॥१३०॥ अब उद्योतके उदयवाले द्वीन्द्रियके उदयस्थानोंका निरूपण करते हैं
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'उज्जोवउदय सहिए वेइंदिय एकवीस छव्वीसं ।
पुव्वुत्त चैव तहां एत्थ य भंगा य पुणरुत्ता ॥ १३१ ॥
एत्थ दो दो भंगा | २|२| पुणरुत्ता |
उद्योतोदयसहिते द्वीन्द्रिये पूर्वोक्तमेवैकविंशतिकं अपर्याप्तरहितं २१ षडविंशतिकं च भवति २६ । ग्रन्थभूयस्त्वभयान्नास्माभिर्वारंवारं लिख्यते । अत्र भङ्गौ द्वौ २ पुनरुक्तौ । तत्र कालः पूर्वोक्त एव ॥१३१॥
उद्योतप्रकृतिके उदयसे सहित द्वीन्द्रियजीवके पूर्वोक्त ही इक्कीस और छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान जानना चाहिए । यहाँपर भी भङ्ग दो दो होते हैं, जो कि पुनरुक्त हैं ।। १३१ ॥ यहाँपर पुनरुक्त दो-दो भंग होते हैं ।
अब पूर्वोक्त जीवके उनतीसप्रकृतिक उदयस्थानका निरूपण करते हैं'छवीसा उवरिं सरीरपज्जत्तयस्स परघायं । उज्जीवं असुहगई पक्खित्त गुतीस दो भंगा ॥ १३२ ॥
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पविंशत्या उपरि परघातं १ उद्योतं । अप्रशस्तगतिं च प्रक्षिप्य एकोनत्रिंशत्कं स्थानं २६ शरीरपर्याति प्राप्तस्योद्योतोदयसहितद्वीन्द्रियस्योदयागतं भवति २३ । तत्र भङ्गौ द्वौ २ यशोयुग्मस्यैव ॥ १३२ ॥
शरीरपर्याप्तिको पूर्ण करनेवाले द्वीन्द्रियजीवके छब्वीसप्रकृतिक उदयस्थानके परघात, उद्योत और अप्रशस्तविहायोगति, इन तीन प्रकृतियोंके मिलानेपर उनतीसप्रकृतिक उदयस्थान हो जाता है । यहाँपर भी दो भंग होते हैं ॥१३२॥
अब उसी जीवके तीसप्रकृतिक उदयस्थानका निरूपण करते हैं'एमेव होइ तीसं आणापज्जत्तयस्स उस्सासं ।
पक्खित े तह चैव य भंगा वि हवंति दो चैव ॥ १३३ ॥ |
भंगा २ ।
एवं पूर्वोक्तनवविंशतिकं २६ । तत्रोच्छ्वासनिःश्वासे निक्षिप्ते त्रिंशत्कं नामप्रकृत्युदयस्थानं उद्योतोदयसहितद्वन्द्रियस्योदयागतं भवति ३० उच्छ्रासपर्याप्तौ कालोऽन्तर्मुहूर्तः । त्रिंशत्कं द्वैधं, भङ्गौ द्वौ
भवतः ॥ १३३॥
इसी प्रकार श्वासोच्छ्रास पर्याप्तिको सम्पन्न करनेवाले द्वीन्द्रियके उनतीसप्रकृतिक उदयस्थानमें उच्छ्रासप्रकृति के मिलाने पर तीसप्रकृतिक उदयस्थान हो जाता है । यहाँ पर भी भङ्ग दो ही होते हैं ॥ १३३॥
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अब उसी जीवके इकतीसप्रकृतिक उदयस्थानका कथन करते हैं
'एमेव एकतीसं भासापज्जत्तयस्स णवरिं तु । दुस्सर संपत्ति दो चेव हवंति भंगा
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॥१३४॥
1. सं० पञ्चसं ०५, १५१ । २. ५, १५२ । ३५, १५३ । 4.५, १५४ |
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