________________
१४४
पञ्चसंग्रह
इंदिय दोण्णि य काया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्सादिदुयं एयं भयजुयलं एयजोगो य ॥१६७॥
१।२।३।१।२।२।१ एदे मिलिया १२ । १।२।३।१।२।२।१ एकीकृताः १२ । एतेषां भङ्गाः ६।१५।४।३।२।१० गुणिताः २१६०० ॥१६॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; ये बारह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१६७॥
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+२+३+१+२+२+१=१२ ! एदेसि च भंगा-- ६।१५।४।३।२।१० एए अण्णोण्णगुणिया = २१६०० ६।२०।४।३।२।२।१०
=५७६०० ६।१५।४।३।२११०
=२१६०० सव्वे मेलिए--
=१००८०० सर्वे मीलिताः १००००० द्वादशप्रत्ययानां विकल्पाः । मिश्र गुणस्थानमें बारह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी तीनों प्रकारोंके भङ्ग इस प्रकार हैंप्रथम प्रकार-६।१५।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करने पर २१६०० भङ्ग होते हैं। द्वितीय प्रकार-६२०।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करने पर ५७६०० भङ्ग तृतीय प्रकार-६।१५।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करने पर २१६०० भङ्ग उक्त सर्व भङ्गोंका जोड़
१००८०० होता है।
का. भ. सम्यमिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले तेरह बन्ध-प्रत्ययसम्बन्धी भंगोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है
इंदिय पंच वि काया कोहाई तिण्णि एय वेदो य । हस्साइजुयं एयं जोगो तेरस हवंति ते हेऊ ॥१६॥
१।५।३।१।२१ एदे मिलिया १३ । १।५।३।१।२।१ एकीकृताः १३ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ६।६।४।३।२।१० गुणिताः ८६४० ॥१६८॥
अथवा मिश्रगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१६॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+५+३+१+२+१=१३ ।
इंदिय चउरो काया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्साइदुयं एवं भयदुय एयं च एयजोगो य ॥१६६॥
१।४।३।१।२।१।१ एदे मिलिया १३ । १।४।३।१।२।१।१ एकीकृताः १३ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ६।१५।४।३।२।२।१० परस्परेण गुणिताः ४३२०० ॥१६॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, एक वेद, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; ये तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१६६।।
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+४+३+१+२+१+१=१३ ।
1.0m
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org