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पञ्चसंग्रह
शेष जो जघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध हैं, वे दो प्रकार के होते हैं—सादि अनुभागबन्ध और अध्रुवअनुभागबन्ध | वेदनीय और नामकर्मके शेषत्रिक अर्थात् उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य- अनुभागबन्ध भी सादि और अध्र बके भेदसे दो प्रकारके होते है । गोत्रकर्मके जघन्य और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध भी सादि और अध्रुवरूप दो-दो प्रकार के होते हैं। आयुकर्म उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य; ये चारों ही प्रकारके अनुभागबन्ध सादि और अध्रुव ये दो ही प्रकार के होते हैं ॥४४२-४४३||
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२६२
४
४
४
४
२
२
२
२
यहाँपर मूलप्रकृतियोंके उत्कृष्ट आदिके सादि आदि बन्धोंका चित्र इस प्रकार है
चार घातिया कर्म
सा० सा० अना०
सा०
सा०
जघ०
अज०
उत्कृ०
अनु०
आयुक
सा०
सा०
सा०
सा० ०
वेदनीय और नामकर्म
०
०
०
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जघ ०
सा०
अज०
सा०
उत्कृ०
सा०
अनु० सा० अना० ध्रुव
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O
०
०
०
G
अध्रु०
अध्रु०
भध्र ु०
अधु०
अश्रु २
अध्रु० २
अध्रु०२
अध्र० ४
४
४
५
४
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जघ०
अज०
उत्कृ०
अनु०
सा०
[मूलगा ०६५] 'अट्ठण्हमणुक्कस्सो तेयालाणमजहण्णओ बंधो ।
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०
4. सं० पञ्चसं० ४, २६५-२६६ । .४, २६७-२६८ ।
१. शतक० ६७ ।
गोत्रकर्म
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जघ ०
भज०
सा०
सा०
उत्कृ० अनु० सा० अना० ०
०
०
ओ दु चउवियप्पो सेसतिए होइ दुवियप्पो ||४४४॥
ध्र ०
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०
अना० प्र०
०
०
अब मूलशतककार उत्तरप्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुत्कृष्टादि भेदों में सम्भव सादि आदि अनुभागबन्धकी प्ररूपणा करते हैं
अध्रु० २
अ०४
"तेजा कम्मसरीरं वण्णचउक्कं पसत्थमगुरुलहुँ ।
णिमिणं च जाण अट्ठसु चदुव्वियप्पो अणुक्कस्सो ||४४५||
अप्र० २
अध्रु० २
८|४३
अथ ध्रुवासु प्रशस्ताप्रशस्तानामध्रुवाणां च जघन्याजघन्यानुत्कृष्टोत्कृष्टानां सम्भवत्साद्यादिभेदान् गाथापञ्चकेनाऽऽह - [ 'अट्टण्हमणुक्कस्सो' इत्यादि । ] अष्टानां प्रकृतीनां ८ अनुत्कृष्टानुभागबन्धः साद्यनादिध्रुवाभ्रुवभेदेन चतुर्विकल्पः ४ । त्रिचत्वारिंशतः प्रकृतीनां ४३ अजघन्यानुभागबन्धः साद्यादिचतुर्भेदो ४ ज्ञेयः । शेषत्रिकेषु द्विविकल्पः साद्यध्रुवभेदाद् द्विप्रकारः ८|४३ ॥४४४॥ ं
अध्रु० २ अध्रु० ४
वक्ष्यमाण आठ उत्तरप्रकृतियोंका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध, तथा तेतालीस उत्तरप्रकृतियोंका अजघन्य अनुभागबन्ध सादि आदि चारों प्रकारका जानना चाहिए । शेषत्रिक अर्थात् आठ प्रकृतियोंके जघन्य, अजघन्य और उत्कृष्ट, तथा तेतालीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य अनुभागबन्ध सादि और अध्रुव ऐसे दो-दो प्रकार के होते हैं ||४४४॥ -
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अब भाष्यगाथाकार उक्त आठ और तेतालीस प्रकृतियोंका नाम-निर्देश करते हैं
अध्रु० २ अध्रु० ४
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