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पञ्चसंग्रह अब प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें सात बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भंग कहते हैं
संजलण य एयदरं एयदरं चेव तिणि वेदाणं । हस्साइदुयं एयं भयजुयलं सत्त जोगो त्ति ॥१६६।।
१।२।२।५ । एदे मिलिया ७ । १।१२।२।१ एकीकृताः ७ प्रत्ययाः। एतेषां भङ्गाः ४।३।२६ । आहारकद्वयापेक्षया ४।१।२।२ परस्परं गुणिताः २१६।१६ ॥१६॥
कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदोंमेंसे कोई एक वेद, हास्यादि एक युगल, भययुगल और एक योग, इस प्रकार सात बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१६॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+२+२+ १ =७ एदेसिं च भंगा-४।३।२।६ एए अण्णोण्णगुणिए =२१६ ॥१२॥२, ,,
१६ दो वि मेलिए उकस्सभंगा भवंति पमत्तस्स% २३२ सब्वे भंगा (२३२+ ४६४ + २३२%3) ६२८
पमत्तसंजदस्स भंगा समत्ता । राशिद्वयमीलितं प्रमत्तसंयतस्योत्कृष्टभङ्गविकल्पाः २३२ भवन्ति । पञ्चकादयः सर्वे एकीकृताः १२८ प्रमत्तस्य भङ्गाः स्युः।
इति प्रमत्तगुणस्थानभङ्गाः समाप्ताः । इनके भंग इस प्रकार हैं
(१) ४।३।२।६ इनका परस्पर गुणा करने पर २१६ भंग होते हैं।
(२) ४।१।२।२ इनका परस्पर गुणा करने पर १६ भंग होते हैं। उक्त दोनों भंगोंके मिलाने पर प्रमत्तसंयतके उत्कृष्ट भंग २३२ होते हैं। इस प्रकार सर्व भंग ६२८ होते हैं । जिनका विवरण इस प्रकार हैपाँच बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भंग- २३२ छह " " "
४६४ सात "
२३२ सर्व भङ्गोंका जोड़
१२८ इस प्रकार प्रमत्तसंयतगुणस्थानके भंगोंका विवरण समाप्त हुआ। अब अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण गुणस्थानके बन्ध-प्रत्यय और उनके भंगोंका निरूपण करते हैं
जे पच्चया वियप्पा भणिया णियमा पमत्तविरदम्मि । :
ते अप्पमत्त पुत्वे आहारदुगूणया णेया ॥२०॥ अथाप्रमत्ताऽपूर्वकरणयोः प्रत्ययभेदान् प्राऽऽह-['जे पच्चया वियप्पा' इत्यादि । प्रमत्तविरते ये प्रत्ययविकल्पाः पञ्चादिसप्तान्तोक्ताः प्रत्यपभङ्गाः भणितास्त एव प्रत्ययाः भङ्गाः अप्रमत्ताऽपूर्वकरणगुणस्थानयोराहारकद्वयोना ज्ञेया नियमात् ॥२०॥
प्रमत्तविरतगुणस्थानमें जो बन्ध-प्रत्यय और उनके भंग कहे हैं, नियमसे वे ही अप्रमत्तविरत और अपूर्वकरणमें आहारकद्विकके विना जानना चाहिए ॥२००।।
1. सं० पञ्चसं० ४,६५ ।
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