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पञ्चसंग्रह
अनिवृत्तिकरण- सवेदभागके भङ्ग इस प्रकार होते हैं(१) ४।३।६ इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग (२) ४|२| इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग (३) ४|१|६ इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग उक्त सर्व भंगों का जोड़
'चदुसंजलणणवहं जोगाणं होइ एयदर दो ते । कोहूणमाणवज्जं मायारहियाण एगदरगं वा ॥ २०२॥
११ एए मिलिया जहण्णपच्या दोष्णि हवंति २ ।
अनिवृत्तिकरणस्य अवेदस्य चतुर्थे भागे चतुर्णां संज्वलनकषायाणां मध्ये एकतरकषायोदयः १ | नवानां योगानां मध्ये एकतरयोगोदयः । इति द्वौ २ जघन्यौ प्रत्ययौ । ११ एतौ ॥ २०२ ॥
गुणस्थानके अवेद भागमें चारों संज्वलनोंमें से कोई एक कषाय, तथा नव योगों में से कोई एक योग; ये दो बन्ध-प्रत्यय होते हैं । अथवा क्रोधको छोड़कर शेष तीनमें से, मानको छोड़कर शेष दोमेंसे एक और मायाको छोड़कर केवल लोभ-संज्वलन इस प्रकार एक कषाय होती है || २०२||
एलिं च भंगा - ४६ एए अण्णोष्णगुणिए = ३६ ।
३६ "
=२७ ।
२।६
=१८ ।
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33
-
1. सं० पञ्चसं० ४,६७ ।
+ब च.
१०८ होते हैं । ७२ होते हैं । ३६ होते हैं ।
२१६ होता है ।
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33
तयोभंगौ ४ । परस्परेण गुणितौ ३६ । क्रोधोने संज्वलनक्रोध-रहिते तत्पञ्चमे भागे ३६ । गुणितौ २७ । संज्वलनमानवर्जिते तत्पष्ठे भागे २६ । अन्योन्यगुणितौ १८ | वा अथवा माया-रहितलोभोदयः एकतरः, तदा १६ । अन्योन्यगुणितौ । एते सर्वे मीलिताः ३०६ उत्तरोत्तरप्रत्ययविकल्पाः अनिवृत्तिकरणे भवन्ति ।
= ह।
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एवमणिय हिस्स भंगा ३०६ ।
अणिय हिसंजदस्स भंगा समता ।
इत्येवमनिवृत्तिकरणस्य भंगाः समाप्ताः ।
इस प्रकार एक संज्वलन कषाय और एक योग, ये दो जघन्य बन्ध-प्रत्यय होते हैं । इनके भंग इस प्रकार हैं
४|६ इनका परस्पर गुणा करने पर ३।६ इनका परस्पर गुणा करने पर २६ इनका परस्पर गुणा करने पर १६ इनका परस्पर गुणा करने पर
इस प्रकार दो बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भंगों का जोड़
तीन प्रत्यय-सम्बन्धी २१६ और दो प्रत्यय-सम्बन्धी ६० इनके मिलाने पर नवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में सर्व भंग ३०६ होते हैं ।
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३६ भंग होते हैं । २७ भंग होते हैं ।
१८ भंग होते हैं
६ भंग होते हैं । ६० होता है ।
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