SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ पञ्चसंग्रह अनिवृत्तिकरण- सवेदभागके भङ्ग इस प्रकार होते हैं(१) ४।३।६ इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग (२) ४|२| इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग (३) ४|१|६ इनका परस्पर गुणा करने पर उत्कृष्ट भङ्ग उक्त सर्व भंगों का जोड़ 'चदुसंजलणणवहं जोगाणं होइ एयदर दो ते । कोहूणमाणवज्जं मायारहियाण एगदरगं वा ॥ २०२॥ ११ एए मिलिया जहण्णपच्या दोष्णि हवंति २ । अनिवृत्तिकरणस्य अवेदस्य चतुर्थे भागे चतुर्णां संज्वलनकषायाणां मध्ये एकतरकषायोदयः १ | नवानां योगानां मध्ये एकतरयोगोदयः । इति द्वौ २ जघन्यौ प्रत्ययौ । ११ एतौ ॥ २०२ ॥ गुणस्थानके अवेद भागमें चारों संज्वलनोंमें से कोई एक कषाय, तथा नव योगों में से कोई एक योग; ये दो बन्ध-प्रत्यय होते हैं । अथवा क्रोधको छोड़कर शेष तीनमें से, मानको छोड़कर शेष दोमेंसे एक और मायाको छोड़कर केवल लोभ-संज्वलन इस प्रकार एक कषाय होती है || २०२|| एलिं च भंगा - ४६ एए अण्णोष्णगुणिए = ३६ । ३६ " =२७ । २।६ =१८ । १६ Jain Education International 33 - 1. सं० पञ्चसं० ४,६७ । +ब च. १०८ होते हैं । ७२ होते हैं । ३६ होते हैं । २१६ होता है । " >" 33 तयोभंगौ ४ । परस्परेण गुणितौ ३६ । क्रोधोने संज्वलनक्रोध-रहिते तत्पञ्चमे भागे ३६ । गुणितौ २७ । संज्वलनमानवर्जिते तत्पष्ठे भागे २६ । अन्योन्यगुणितौ १८ | वा अथवा माया-रहितलोभोदयः एकतरः, तदा १६ । अन्योन्यगुणितौ । एते सर्वे मीलिताः ३०६ उत्तरोत्तरप्रत्ययविकल्पाः अनिवृत्तिकरणे भवन्ति । = ह। 33 एवमणिय हिस्स भंगा ३०६ । अणिय हिसंजदस्स भंगा समता । इत्येवमनिवृत्तिकरणस्य भंगाः समाप्ताः । इस प्रकार एक संज्वलन कषाय और एक योग, ये दो जघन्य बन्ध-प्रत्यय होते हैं । इनके भंग इस प्रकार हैं ४|६ इनका परस्पर गुणा करने पर ३।६ इनका परस्पर गुणा करने पर २६ इनका परस्पर गुणा करने पर १६ इनका परस्पर गुणा करने पर इस प्रकार दो बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भंगों का जोड़ तीन प्रत्यय-सम्बन्धी २१६ और दो प्रत्यय-सम्बन्धी ६० इनके मिलाने पर नवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में सर्व भंग ३०६ होते हैं । For Private & Personal Use Only ३६ भंग होते हैं । २७ भंग होते हैं । १८ भंग होते हैं ६ भंग होते हैं । ६० होता है । www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy